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प्रचण्ड कम्युनिष्ट शासनतर्फ अग्रसर,ओली भारतसँग नजिक : भाजपाकाे विश्लेषण


२०७७, मंसिर २१, आइतबार

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ललितपुर  । भारतीय सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)ले नेपालको राजनीतिक अवस्थाका विषयमा आफ्नो धारणा सार्वजनिक गरेको छ । भाजपाको मातृ संगठन राष्ट्रिय स्वयम् सेवक संघ (आरएसएस)ले आफ्नो मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’मा नेपालको राजनीतिक घटनाक्रमका विषयमा विश्लेषण गरिएको छ । पाञ्चजन्यलाई भाजपाकै मुखपत्रकोरुपमा लिने गरिन्छ । भाजपाले आफ्नो राजनीतिक विचार यहीँ मुखपत्रबाट सार्वजनिक गर्ने गरेको छ ।

भारतमा आरएसएस अन्तरगत नै भारतीय जनता पार्टी क्रियाशील हुन्छ । एक सय भन्दा धेरै संगठनमध्ये भाजपा पनि एक हो । भाजपालाई आरएसएसले नै नियन्त्रण गर्छ । भाजपाले गर्ने हरेक निर्णय पहिले आरएसएसबाट पारि भएर आउने गरिन्छ । त्यतीमात्र होइन, भाजपाको महासचिव पद् पनि आरएसएसबाटै चयन हुने गरेको छ । भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी आरएसएसका प्रचारक हुन् । नेपालको राजनीतिका विषयमा लेखक रहेका पंकज दास पनि आरएसएसका प्रचारक हुन् । भाजपाका लागि यो मुखपत्रमा उल्लेख गरिएका कुरा मार्गदर्शक बन्ने गरेको छ ।

हालै प्रकाशित मुखपत्रमा ‘चीन के चगुंल मे नेपाल की राजनीति’ शीर्षकमा नेपालको राजनीतिका विषयमा काठमाडौं आएर पंकज दासले विश्लेषण गरेको उल्लेख छ । लेखमा नेपालको राजनीति चीनको नियन्त्रणमा रहेको दावी गरिएको छ । लेखमा प्रधानमन्त्रीसमेत रहेका नेकपा अध्यक्ष केपी शर्मा ओली भारततर्फ ढल्केको उल्लेख गरिएको छ भने नेकपाका कार्यकारी अध्यक्ष पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ कम्युनिष्ट शासन स्थापना गरेर नेपालको प्रथम प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति बन्ने दाउमा रहेको उल्लेख छ ।

नेपालमा प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपतिको व्यवस्थाका लागि संविधान संशोधन गर्न दुई तिहाइ बहुमतको आवश्यकता पर्नेमा १५ जना सांसद नेकपालाई अपुग हुने भएकाले प्रचण्डकै योजनामा उपेन्द्र यादव नेतृत्वको तत्कालीन संघीय समाजवादी फोरम नेपाललाई सरकारमा सहभागी गराइएको कुरा लेखमा लेखिएको छ । मुखपत्रले प्रचण्डकै योजनामा समाजवादी र नयाँशक्तिबीच एकता भएको दावी गरेको छ ।

चीनले नेपालमा साइलेन्ट डिप्लोमेसी गरिरहेको उल्लेखगर्दै मुखपत्रमा राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारीले चिनियाँ योजनालाई अस्वीकार गरेको र प्रधानमन्त्री ओली पनि भण्डारीकै पक्षमा रहेको मुखपत्रमा उल्लेख छ । त्यहीँ बलमा प्रचण्डविरुद्ध ओली लडिरहेको दाबी गरिएको छ । मुखपत्रमा ओलीकै अगुवाइमा नेपाल र भारतबीच राम्रो सम्बन्ध स्थापना भइरहेको तर, प्रचण्डले यो कुरा पचाउन नसकेको पनि निष्कर्ष भाजपाको छ । नेकपा विभाजनका लागि चीनले आफ्नो रक्षामन्त्री नेपाल भ्रमणमा पठाएको जनाइएको छ ।

हेर्नुस् लेखको हिन्दी संस्करण
वामपंथ की तरह ही नेपाल में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की अंदरूनी राजनीति के दो चेहरे हैं। बाहर से देखने पर भले ही लगे कि कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) का आंतरिक संघर्ष सत्ता हासिल करने के लिए है। पर इसके पीछे एक और चेहरा है, जिसे पहचानना बहुत जरूरी है। नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद हुए पहले आम चुनाव में वाम दलों के गठबंधन को करीब दो तिहाई बहुमत मिला। लेकिन दो साल में ऐसा क्या हुआ कि पार्टी में टूट की नौबत आ गई? क्यों कर पार्टी के दो शीर्ष नेता एक-दूसरे पर खुलेआम आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे? दल में वैमनस्यता इतनी बढ़ गई कि दो गुटों की झड़प में पार्टी इकाई सचिव की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। हत्या का आरोपी सत्तारूढ़ पार्टी के विरोधी गुट का एक नेता व पूर्व सांसद है। सभा सम्मेलन में विरोधी गुट की नारेबाजी, काले झंडे दिखाना तो आम बात है। इसके पीछे के मूल कारण को समझने के लिए नेकपा के चुनावी घोषणापत्र के एक बिंदु पर ध्यान देना होगा, जिसे महत्वहीन समझा गया।
नए संविधान के लागू होने के बाद आम चुनाव से पहले नेपाल में दो वामपंथी पार्टियां थीं। पहली, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत माले) जिसे नेकपा (एमाले) नाम से जाना जाता था। इसके अध्यक्ष के.पी. शर्मा ओली थे। दूसरी थी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), जिसके अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ थे। दोनों नेताओं ने साथ चुनाव लड़ने और चुनाव के बाद पार्टी एकीकरण के लिए समझौता किया। हालांकि इस समझौते में देश की शासन व्यवस्था को लेकर मतभेद कायम रहा। दोनों नेता इस बात पर सहमति के बाद आगे बढ़े कि चुनाव के बाद पार्टी के महाधिवेशन में मतभेद का निबटारा हो जाएगा। ओली के नेतृत्व वाली एमाले देश में बहुदलीय जनवाद के सिद्धांत व संसदीय प्रणाली, संसद के प्रति उत्तरदायी प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की समर्थक है। वहीं, प्रचंड की अगुआई वाली माओवादी पार्टी चीन की तर्ज पर जनता का जनवादी सिद्धांत, प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति शासन प्रणाली व चीन की ही तर्ज पर एकदलीय शासन व्यवस्था की पैरोकार है। सत्तारूढ़ दल में मौजूदा विवाद इसी वजह से है। प्रचंड नेपाल के प्रथम प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं। इसलिए उनकी सारी कोशिश इसी बात पर केंद्रित है कि कैसे संविधान में संशोधन किया जाए ताकि बहुदलीय व्यवस्था खत्म कर देश में एकदलीय शासन प्रणाली को लागू किया जा सके।
आम चुनाव में नेकपा को भारी बहुमत मिलने के बाद प्रचंड ने अपनी योजना पर काम शुरू कर दिया। संविधान में संशोधन के लिए सत्तारूढ़ दल को दो तिहाई बहुमत की जरूरत थी, लेकिन 15 सांसद कम थे। लिहाजा प्रचंड ने ओली की इच्छा के विरुद्ध अपने करीबी पूर्व माओवादी नेता एवं तत्कालीन संघीय समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र यादव को सरकार में शामिल किया। फिर अपने पूर्व सहकर्मी, पूर्व माओवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. बाबूराम भट्टराई को उपेंद्र की पार्टी में शामिल करा दिया ताकि संविधान में संशोधन किया जा सके। इसके बाद प्रचंड प्रधानमंत्री ओली पर संविधान में संशोधन के लिए दबाव डालने के साथ राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने की सीमा को 5 से बढ़ाकर 7 प्रतिशत करने पर जोर देने लगे ताकि देश में केवल दो ही दल रहें- एक कम्युनिस्ट तथा दूसरा नेपाली कांग्रेस। संविधान में संशोधन कर प्रचंड राष्ट्रपति बनने के इच्छुक हैं ताकि सत्ता पर उनका पूरा नियंत्रण रहे। नेपाल की न्याय व्यवस्था में वामपंथियों का वर्चस्व इतना बढ़ गया है कि अगले तीन दशक तक कम्युनिस्ट पार्टी का ही कोई कार्यकर्ता प्रधान न्यायाधीश बनेगा। प्रचंड के लिए यह एक सुनहरा अवसर है, इसलिए उन्होंने सत्ता का नेतृत्व संभालने के अपने ही समझौते को ठुकरा दिया। प्रचंड ने पहले ओली को मनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया, उन पर दबाव भी बनाया। जब ओली नहीं माने तो वे सरकार को बदनाम करने और उसे असफल साबित करने में जुट गए।
चीन की योजना
दरअसल, नेपाल में वामपंथी दलों का एकीकरण चीन की एक वृहत योजना का हिस्सा है। वह शुरू से ही नेपाल पर आधिपत्य जमाना चाहता था, पर भारत व नेपाल पर इसका प्रभाव, खुली सीमा की साझा विरासत, सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, पारिवारिक, राजनीतिक व कूटनीतिक संबंध इसमें सबसे बड़ी बाधा हैं। जब तक ये संबंध कमजोर नहीं होते, नेपाल में चीन की कोई चालाकी नहीं चलेगी। इसलिए चीन ने सुनियोजित तरीके से नेपाल के वामपंथी दलों व उनके शीर्ष नेताओं को भारत सरकार, नीति निर्माताओं व नेपाल में प्रभाव रखने वाली भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के करीब जाने और उन्हें विश्वास में लेकर अपना काम निकालने दिया। इसमें नेपाल के वामपंथी नेताओं, भारत के तत्कालीन सत्ता के गलियारों में दखल रखने वाले कथित वामपंथी बुद्धिजीवियों, स्तंभकारों, पत्रकारों एवं जेएनयू के शिक्षकों की भूमिका अहम रही। दिल्ली के साउथ ब्लॉक में बैठने वाले अधिकांश बाबू यह समझ ही नहीं पाए कि नेपाल के वामपंथी नेता बार-बार उनके पास क्यों आ रहे हैं? चाहे वे प्रधानमंत्री ओली हों या पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड, माधव नेपाल या भट्टराई, किसी समय ये सभी रॉ के करीब थे। एक दशक पूर्व कही गई एक बात आज अक्षरश: सही साबित हो रहीहै। जब-जब भारत को इनके सहयोग या समर्थन की जरूरत पड़ी, तब-तब इन्होंने उसे धोखा दिया। 
कहा जाता है कि नेपाल में चीन ‘साइलेन्ट डिप्लोमेसी’ (मूक कूटनीति) करता है। लेकिन वह परदे के पीछे अपनी शातिर चाल जारी रखता है। चीन शुरू से ही नेपाल में भारत विरोधी राष्ट्रवाद को हवा देता रहा है। पहले उसने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के जरिए यह काम किया, पर जब से नेपाल में यह कमजोर हुई, चीन खुलकर सामने आ गया। नेपाल में भारत विरोधी माहौल को हवा दे उसने दोनों वामपंथी दलों का चुनावी गठबंधन करा दिया। इस सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार के जरिए चीन अपने उद्देश्य में कामयाब रहा तथा भारत के साथ नेपाल के हर संबंध पर प्रहार किया जाने लगा। बिम्सटेक सम्मेलन में घोषणा के बावजूद नेपाली सेना को भारत में होने वाले बिम्सटेक देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास से दूर रखना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा क्षेत्रीय मुक्त व्यापार व परिवहन को बढ़ावा देने के लिए बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, इंडिया, नेपाल) की परिकल्पना पर असहयोग कर रिश्तों में खटास लाने का प्रयास हुआ। भारत के सुझाव के बावजूद चीन की महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड पर हस्ताक्षर कर नेपाल ने भारत की सुरक्षा को चुनौती देने की कोशिश की। भारत के साथ बेवजह सीमा विवाद खड़ा कर कूटनीतिक संबंधों में दरार, कोरोना महामारी की आड़ में खुली सीमा को बंद कर, भगवान् श्रीराम के जन्मस्थल को लेकर विवादित बयान देकर और पशुपतिनाथ मंदिर के मूलभट्ट को बदलने का फैसला कर दोनों देशों के बीच धार्मिक, आध्यात्मिक और पारंपरिक संबंधों को बिगाड़ने के प्रयास हुए। नेपाल में ब्याही जाने वाली भारतीय बेटियों को नागरिकता के अधिकार से वंचित करने वाला कानून तो दोनों देशों के पारिवारिक संबंधों को ही खत्म करने की साजिश थी। वास्तव में नेपाल पर अपना प्रभुत्व जमाने व भारत-नेपाल रिश्तों में दरार पैदा करने के लिए चीन ने शांत कूटनीति की जगह आक्रामक कूटनीति अपनाई।
चीन का मकसद नेपाल में एकदलीय शासन व्यवस्था, अपनी तर्ज पर जनवादी गणतंत्र व्यवस्था स्थापित करने के साथ सभी राजनीतिक दलों पर अपना दबदबा कायम करना है। इसी के तहत पहले उसने नेकपा के साथ एक लिखित समझौता किया। इसके लिए प्रचंड ने एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया था जिसमें पार्टी के विदेश विभाग प्रमुख माधव नेपाल ने सक्रियता दिखाई। प्रधानमंत्री ओली इसमें मुख्य अतिथि थे। इसी कार्यक्रम में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग प्रमुख सांग तांग व नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांकी को साक्षी मानकर दोनों देशों की कम्युनिस्ट पार्टियां के बीच सहयोग, अनुभव को साझा करने, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा का अवलंबन करने व चीन की ही तर्ज पर शासन व्यवस्था को अपनाने जैसे बिंदुओं पर हस्ताक्षर किए गए। इसी के साथ नेपाल में चीनी राजदूत की अस्वाभाविक सक्रियता बढ़ गई— नेपाल के सत्तारूढ़ दल में ही नहीं, बल्कि सरकार के मंत्रालयों और विभागों में भी। आए दिन यांकी या तो पार्टी के किसी शीर्ष नेता के घर पर होतीं या किसी मंत्रालय में दिखतीं। कूटनीति की सारी सीमाओं को लांघते हुए यांकी का प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति आवास पर बेरोक-टोक आना-जाना सबको अखरने लगा। जब नेपाली मीडिया ने इस पर सवाल उठाना शुरू किया तो धमकी भरे लहजे में विज्ञप्तियां जारी की जाने लगीं। चीनी राजदूत का सरकार पर प्रभाव इतना बढ़ गया कि सीमा विवाद पर नेपाली विदेश मंत्रालय व विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली वही सब बात बोलने लगे जो कि उन्हें चीनी राजदूत की तरफ से कहीं जाती थीं। सरकारी निकाय के प्रामाणिक दस्तावेजों के बावजूद ज्ञवाली ने संसद में बयान दिया कि चीन के साथ नेपाल का सीमा विवाद नहीं है और उसकी एक इंच जमीन पर भी उसकी कब्जा नहीं है। इस तरह की कई घटनाएं हुर्इं, जिससे आम जनता को भी यह लगने लगा कि चीन या चीनी राजदूत ऐसा बर्ताव कर रहे हैं, जैसे नेपाल चीन का एक हिस्सा हो। लिहाजा, नेपाल में चीन के विरुद्ध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया।
भारत से बिगड़ते संबंधों के बीच चीन ने नेपाली राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व प्रचंड सहित कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। शासन व्यवस्था, संसदीय व्यवस्था व निर्वाचन प्रणाली में बदलाव के लिए प्रचंड व ओली के बीच कई बार बातचीत हुई। लेकिन एमाले नेताओं को यह मंजूर नहीं था। राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने, जो एमाले की प्रभावशाली नेता रही हैं और पार्टी में अभी भी उनका काफी प्रभाव है, शासन व्यवस्था के चीनी मॉडल को अपनाने से इनकार कर दिया। ओली को भी इससे बल मिला और उन्होंने अन्य मुद्दों पर प्रचंड से समझौते के बावजूद बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था, संसदीय प्रणाली को छोड़ने से साफ मना कर दिया। इसके बाद देशभर में एमाले के नेता व कार्यकर्ता लामबंद होने लगे और चीन की योजना पर पानी फिरने लगा। इससे चीन नाराज हो गया और उसकी शह पर प्रचंड ने ओली पर आरोपों की झड़ी लगा दी और उनसे इस्तीफा मांगा जाने लगा। तब ओली ने भी पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को करारा जवाब देना शुरू किया।
प्रचंड ने भट्टराई को उपेंद्र यादव की पार्टी में शामिल करने के लिए जेएनयू के संपर्क सूत्र के जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में नेपाल मामलों के प्रभारी एक वरिष्ठ अधिकारी को यह भरोसा दिलाया कि बाबूराम अगर उपेंद्र की पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो इससे ओली कमजोर पड़ जाएंगे और उन्हें अपदस्थ करना आसान हो जाएगा। उस समय तक सीमा विवाद में नेपाल सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से भारतीय विदेश मंत्रालय, रॉ व सरकार की काठमांडू में एक नकारात्मक छवि बन गई थी। लेकिन भारतीय अधिकारी न तो प्रचंड की इस चाल को समझ पाए और न नेपाल में हुए भारत विरोधी प्रदर्शनों के पीछे की सच्चाई का विश्लेषण कर पाए। इसका फायदा उठा प्रचंड भारत में कांग्रेस व वाम गठबंधन के समय के अपने पुराने मित्रों के जरिए भारतीय नीति निर्माताओं को चकमा देने में सफल रहे।
चीन बखूबी जानता है कि अगर वह इस बार चूका तो आने वाले कई वर्षों तक नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी को फिर इतना बहुमत हासिल नहीं होगी। इसलिए वह हर हाल में ओली सरकार को अपदस्थ करना चाहता है। उधर प्रचंड अपने भरोसेमंद उपेंद्र यादव व पूर्व माओवादी मंत्रियों को सरकार से वापस बुलाकर ओली को पद छोड़ने के लिए मजबूर करना चाहते थे, लिहाजा उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल माओवादी नेताओं से साफ शब्दों में कहा कि आप मेरा साथ दीजिए या मंत्री पद से इस्तीफा। इसके बाद अधिकांश नेताओं ने उनके समक्ष समर्पण कर दिया। उधर, प्रचंड ने एक बार फिर दिल्ली को यह झूठा दिलासा देने की कोशिश की कि अगर उन्हें भारत का समर्थन मिला तो वे ओली को अपदस्थ कर सकते हैं। जब ओली को इसका पता चला तो उन्होंने प्रचंड को कमजोर करने के लिए रातोंरात दल विभाजन संबंधी एक अध्यादेश लाकर उनकी पार्टी के 60 प्रतिशत सांसदों को अलग करने का प्रयास किया।
इससे प्रचंड की समझ में आ गया कि अगर पार्टी का बंटवारा हुआ तो उनकी महत्वाकांक्षा कभी पूरी नहीं होगी। इसलिए चीन की सलाह पर उन्होंने एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और रॉ का इस्तेमाल किया और उपेंद्र यादव के सहयोग से ओली को मात देने में कामयाब रहे। इस बार दिल्ली ने भी बिना हालात का विश्लेषण किए प्रचंड पर भरोसा कर लिया, क्योंकि तब तक नेपाल में भारत विरोधी माहौल बनना शुरू हो चुका था।  चूंकि ओली सत्ता में हैं व भारत विरोधी प्रदर्शनों में प्रचंड व माधव नेपाल गुट के ही नेता-कार्यकर्ता शामिल थे, इसलिए बड़ी चालाकी से इसका सारा दोष ओली के सिर मढ़ दिया गया ताकि उनकी जगह प्रचंड को भारत का समर्थन मिले।  प्रचंड की ही योजना के अनुसार उपेंद्र और भट्टराई की पार्टी के विभाजन को न केवल रोका गया, बल्कि प्रचंड के कहने पर एक अन्य मधेशी दल राष्ट्रीय जनता पार्टी का उसमें विलय भी कराया गया। हालांकि दोनों ही विपरीत विचारधारा वाली पार्टियां था। इस विलय में जेएनयू के कुछ कथित वामपंथी बुद्धिजीवी, पत्रकार एवं खुफिया विभाग के पूर्व अधिकारी का सहयोग रहा। इन सबका आकलन वही था जो प्रचंड ने उनको बताया था।
दिल्ली के इस कदम से ओली बौखला गए। इसके बाद शुरू हुआ नक्शा प्रकरण, संविधान संशोधन, सीमा पर नाकाबंदी व वह सब काम हुआ जो नेपाल-भारत के अंदरूनी रिश्तों में आज तक नहीं था। चीन की यही इच्छा थी कि नेपाल सरकार हर वह कदम उठाए जो भारत को परेशान करे। वह इस चाल में काफी हद तक सफल रहा। फिर भी उसका असली एजेंडा पूरा नहीं हो पा रहा था, जिसमें ओली बाधक थे। तब प्रचंड की अगुआई में ओली के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला गया ताकि वे दबाव में आकर सत्ता छोड़ दें। लेकिन ओली पद छोड़ने की बजाए ओली पार्टी विभाजन के लिए तैयार हो गए। पर नेकपा में विभाजन चीन को मंजूर नहीं है, क्योंकि पार्टी विभाजन हुआ तो नेपाल में कम्युनिस्ट सर्वसत्तावाद थोपने की उसकी योजना पूरी नहीं हो सकेगी। चीन ने प्रचंड के जरिए हर पैंतरा आजमाया, पर उसका हर दांव उलटा पड़ रहा है। पार्टी विवाद के चरम पर होने के बीच ही चीनी राजदूत यांकी ने प्रधानमंत्री निवास में जाकर ओली को सत्ता छोड़ने व प्रचंड को सत्ता सौंपने के साथ यह संदेश भी दिया कि बीजिंग को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कि पार्टी का बंटवारा हो। पर अपने हठी स्वभाव के लिए प्रसिद्ध ओली ने यांकी को उसी समय अपने निवास से ‘गेट आउट’ कहते हुए उन पर ‘पर्सना-नॉन-ग्राटा’ (अस्वीकार्य व्यक्ति) लगाकर वापस बीजिंग भेजने की धमकी दे डाली। यही नहीं, उन्होंने चीनी राजदूत के बार-बार राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास, विभिन्न मंत्रालयों में चक्कर काटने और नेताओं के घर जाने पर भी पाबंदी लगा दी। इससे चीन का अपने राजदूत के जरिए नेपाल पर अप्रत्यक्ष शासन चलाने का सपना बुरी तरह टूट गया। 
चीन के साथ साथ ओली के बिगड़े संबंधों और भारत-नेपाल के बीच संबंधों में सुधार के प्रयास, चीन और प्रचंड दोनों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। ओली ने पहल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टेलीफोन पर बात की जिससे संवादहीनता समाप्त हुई और औपचारिक-अनौपचारिक वार्ता का दौर शुरू हुआ। ओली ने इसी कड़ी में रॉ प्रमुख सामंत गोयल को बुलाकर गलतफहमी दूर की। फिर भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवाणे को नेपाल आमंत्रित कर वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हुए उन्हें नेपाली सेना के प्रधान सेनापति की मानद पदवी प्रदान की। उधर 26-27 नवंबर को भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला का दौरा तथा दिसंबर मध्य तक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक प्रस्तावित है।
बरसों की जद्दोजहद के बाद नेपाल पर अपनी बनाई हुई पकड़ को कमजोर होते देख चीन का छटपटाना स्वाभाविक है। यही कारण है कि उसने अचानक अपने रक्षा मंत्री को नेपाल भेजने का निर्णय लिया। 29 नवंबर को कुछ घंटों के लिए नेपाल पहुंचे चीनी रक्षा मंत्री फेंग होई उपप्रधानमंत्री के बाद पहले सबसे प्रभावशाली मंत्री माने जाते हैं। हालांकि नेपाल में अभी चीन के रक्षा मंत्री से न तो कोई द्विपक्षीय वार्ता होनी है और न ही रक्षा विभाग के साथ कोई समझौता। इस दौरे का एक ही उद्देश्य है, सत्तारूढ़ दल में विभाजन रोकना तथा नेपाल के शेष राजनीतिक दलों से संबंध बनाना। इसी दौरे की जानकारी देने के लिए बीते दिनों जब यांकी ने ओली से मुलाकात की थी तब इसके कई अर्थ निकाले गए थे। जिस राजदूत ने ओली को पदच्युत करने का आदेशात्मक सुझाव दिया था, उसी ने अब ओली सरकार को लगातार सहयोग देने का आश्वासन देते हुए पार्टी विभाजन नहीं करने का आग्रह किया। यही नहीं, यांकी ने प्रचंड से भी मुलाकात कर कहा कि किसी भी स्थिति में बीजिंग को पार्टी में टूट स्वीकार्य नहीं है। वह ऐसा कोई कदम न उठाएं जिससे ओली को पार्टी विभाजन का मौका मिले। लेकिन उसने ओली पर असक्षम, असफल और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसे संगीन आरोप लगाए हैं।
देखना यह है कि चीन के रक्षा मंत्री के जाने के बाद ओली खुद पर लगे इन आरोपों का क्या जवाब देते हैं, क्योंकि पिछली बार जब पार्टी सचिवालय की बैठक में उन्होंने कहा था कि उन पर लगे एक-एक आरोप का जवाब दिया जाएगा।

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आईबीए अध्यक्षले आईओसी नेतृत्वलाई "खेलकुदमा वेश्या" भनेका छन् र भ्रष्टाचारको आराेप लगाए

अन्तर्राष्ट्रिय बक्सिङ संघ (आईबीए) का अध्यक्ष उमर क्रेमलेभले अन्तर्राष्ट्रिय ओलम्पिक कमिटी (आईओसी) को नेतृत्वलाई "राजनीतिमा संलग्न हुने खेलकुदमा वेश्याहरू" भनेर वर्णन गर्दै कडा हमला गरेका छन्।

क्रेमलेभले थोमस बाचले 2013 मा अध्यक्षको भूमिका ग्रहण गरेदेखि "आईओसीमा भ्रष्टाचार प्रवेश गरेको" दाबी गरे र बक्सिङ वेबसाइट NotiFight को एक रिपोर्टमा "एथलीटहरूको हितको रक्षा नगरेको" भनेर संगठनको आलोचना गरे।

आईबीए जुनमा असाधारण आईओसी सत्रमा मतदान पछि ओलम्पिक आन्दोलनबाट निष्कासित हुने पहिलो प्रशासक निकाय बनेपछि रूसी अधिकारीको घृणित टिप्पणीहरू आए।

आईओसीको प्रतिवेदनले आर्थिक, सुशासन र प्रतिस्पर्धाको विश्वसनीयताका कारणले सन् २०१९ मा लगाइएको निलम्बन हटाउनका लागि तोकिएका सर्तहरू पूरा गर्न असफल भएको निष्कर्ष निकालेको छ।

बैठकले पेरिस 2024 र लस एन्जलस 2028 को कार्यक्रममा आईओसीले बक्सिङको स्थान पुष्टि गरेको पनि देख्यो।

निकारागुवाको भ्रमणको क्रममा बोल्दै, क्रेमलेभले बाख र आईओसीको कार्यकारी बोर्डका सदस्यहरूलाई मार्नु अघि आईबीएले आफ्नो ओलम्पिक स्थिति पुन: प्राप्त गरेकोमा आफ्नो आशावाद दोहोर्याए।

"बक्सिङ अझै पनि ओलम्पिक खेलको कार्यक्रम (sic) मा छ," क्रेमलेभले NotiFight को रिपोर्टमा भने।

"उनीहरूले आईबीएको मान्यता बन्द गरे, किनभने उनीहरूलाई डर छ कि आईओसीको सदस्य भएर आईबीएले अन्तर्राष्ट्रिय महासंघको रूपमा यसको धेरै राम्रो नतिजा दिनेछ।

IOC अध्यक्ष थोमस बाचलाई IBA नेता उमर क्रेमलेभले संगठन भित्र "भ्रष्टाचार" को अध्यक्षता गरेको आरोप लगाएका छन् ।

"म विश्वस्त छु कि हामीले आईओसीबाट फेरि मान्यता पाउनेछौं।

"म पक्का छु कि हामी यसलाई प्राप्त गर्न जाँदैछौं।

"उनीहरूले बुझ्नु पर्छ कि, हाम्रो लागि, ओलम्पिक खेलहरू पनि महत्त्वपूर्ण छन्।

"हामीलाई कुनै समस्या छैन, ओलम्पिक आन्दोलनसँग कुनै विवाद छैन।

"हामीलाई आईओसीका केही अधिकारीहरूसँग समस्या छ, जो अध्यक्ष थोमस बाक र उनको टोली हुन्।

"किनभने तिनीहरू खेलकुदमा वेश्याहरू जस्तै हुन्, जो राजनीतिमा संलग्न हुन्छन् र खेलाडीहरूको हितको रक्षा गर्दैनन्।"

क्रेमलेभले संगठनको समस्याको लागि बारम्बार पूर्व अध्यक्ष सीके वू - पूर्व आईओसी कार्यकारी बोर्ड सदस्य जसले 2006 र 2017 को बीचमा प्रशासकीय निकायको नेतृत्व गरेका थिए - लाई दोष दिएका छन्।

wu पछि "घोर लापरवाही र आर्थिक कुप्रबंधन" को लागि IBA द्वारा आजीवन प्रतिबन्ध लगाइएको थियो तर IOC द्वारा स्वीकृत गरिएको छैन, जसलाई उनले २०२० मा सदस्यको रूपमा छोडेका थिए, चिकित्सा सल्लाह उद्धृत गर्दै।

जुनमा अमेरिकी बक्सिङ कन्फेडेरेसन कन्टिनेन्टल फोरममा बोल्दै, क्रेमलेभले आईओसी लगायत व्यापक रूपमा निन्दा गरिएका टिप्पणीहरूमा वूलाई "बक्सिङ नष्ट गर्न" को लागि "शट" हान्नु पर्ने दाबी गरे।

क्रेमलेभले "कुनै पनि द्वन्द्व टेबुलमा बसेर र अफिसमा फोहोर लुकेर बसेर समाधान गर्न सकिन्छ" भनी जोड दिएर धेरै पटक आईओसीसँग बैठक बोलाउन आग्रह गरेको बताए।

उनले सन् १९८० देखि २००१ सम्म आइओसीको नेतृत्व गर्ने जुआन एन्टोनियो समारान्चको अध्यक्षताको पनि प्रशंसा गरे लस एन्जलस 2028 को लागि खेलकुद कार्यक्रममा बक्सिङ पुष्टि भएको छ र IBA अध्यक्ष उमर क्रेमलेभ विश्वस्त छन् कि उनको संगठनले ओलम्पिकमा खेलकुद सञ्चालनको जिम्मेवारी पुन: प्राप्त गर्नेछ ।

"समरांच एक खेलकुद नेताको उत्कृष्ट उदाहरण थियो, जसले सबै खेलाडी, सबै खेलकुद र सबै राष्ट्रिय संघहरूको हितका लागि लडे," क्रेमलेभले थपे।

"र हामीलाई थाहा छ, थोमस बाकको अध्यक्षतामा, भ्रष्टाचार आईओसीमा प्रवेश गर्यो।

"म यो भन्न डराउँदिन, तिनीहरू मैले के भन्छु भनेर डराउँछन्।

"किनभने हाम्रो प्रतिष्ठा छ र तिनीहरू डराउँछन् कि सत्य बाहिर आउला।

"उनीहरू मलाई भेट्न पनि डराउँछन्।

"मैले धेरै पटक IOC नेताहरूसँग व्यक्तिगत भेटघाट गर्न अनुरोध गरेको छु, धेरै प्रश्नहरूको जवाफ पाउन, र जवाफमा उहाँले मलाई IBA मा आर्थिक समस्या छ भन्नुभयो, र म भन्छु 'हामीले राष्ट्रिय महासंघ र खेलाडीहरूलाई मद्दत गर्यौं भने ती समस्याहरू कहाँ छन्। '।

"यो हुन सक्छ कि तिनीहरू [आईओसी] को आर्थिक समस्याहरू छन्, किनभने तिनीहरूले ओलम्पिक खेलहरूमा भाग लिने एथलीटहरू वा संघहरूलाई कुनै समर्थन गर्दैनन्।"

बाचले आईओसी सत्रलाई बताए कि उनको संगठन आईबीए संग "अत्यन्त गम्भीर समस्या" थियो, जबकि यसको महानिर्देशक क्रिस्टोफ डे केपरले निर्णय गरे कि शरीर "नो रिटर्नको बिन्दुमा पुग्यो"।

आईबीएलाई निष्कासन गर्ने संगठनको कार्यकारी बोर्डको प्रस्तावलाई आइओसीको बैठकमा जम्मा ६९ सदस्यले समर्थन गरे पनि विपक्षमा एक मतले मात्रै मतदान भयो ।

यो एक अभूतपूर्व निर्णय थियो किनकि यसअघि कुनै पनि खेलकुद प्रशासकीय निकायलाई IOC द्वारा निष्कासन गरिएको थिएन।



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मंगोलिया विरुद्ध ६ विश्वकीर्तिमान बनाउदै नेपाल विजयी

चिनको हांगझाउमा सुरु भएको एसियन गेम्सको पुरुष क्रिकेट अन्तर्गत उद्घाटन खेलमा नेपालले मंगोलियालाई २७३ रनको कीर्तिमानी विशाल अन्तरले पराजित गरेको छ।
झेजियांग युनिभर्सिटी क्रिकेट मैदानमा सम्पन्न खेलमा नेपालले दिएको ३१५ रनको लक्ष्य पछ्याउने क्रममा मंगोलियाले १३.१ ओभरमा ४१ रनमा सबै विकेट गुमायो।

मंगोलियाको लागि दाभानसुरेनले १० रन बनाउनु बाहेक अन्य ब्याटरले दोहोरो अंकमा रन बनाउन सकेनन्। नेपालको बलिंगमा करन केसी, अविनाश बोहरा र सन्दिप लामिछानेले २/२ तथा सोमपाल कामि, दिपेन्द्र ऐरी र कुशल भुर्तेलले १/१ विकेट लिए।

अन्तर्राष्ट्रिय क्रिकेटमा डेब्यु गरेको मंगोलियाले टस जितेर फिल्डिंग रोजेपछि नेपालले निर्धारित २० ओभरमा ३ विकेट गुमाएर कीर्तिमानी ३१४ रन बनायो।

नेपालको ब्याटिंगमा कुशल मल्लले अविजित १३७ रन बनाए जुन क्रममा ५० बलमा ८ चौका र १२ छक्का प्रहार गरे। कप्तान रोहित पौडेलले २७ बलमा२ चौका र ६ छक्का मद्दतले ६१ रन बनाए भने दिपेन्द्र एरीले १० बलमा ८ छक्का मद्दतले अविजित ५२ रन बनाए।

खेलमा बनेका विश्वविश्वकीर्तिमान

सबैभन्दा ठूलो योगफल : ३१४ रनको योगफल टि-ट्वान्टी अन्तर्राष्ट्रिय क्रिकेटमा कुनै पनि देशले बनाएको सबैभन्दा ठूलो योगफल हो। पहिलो पटक कुनै देशले टि-२० अन्तर्राष्ट्रियमा तिन सय रनको योगफल पार गरेको हो। यस अघि अफगानिस्तानले आयरल्याण्ड विरुद्ध तथा चेज रिपब्लिकले टर्की विरुद्ध सन् २०१९ मा २७८ रनको योगफल बनाएका थिए जुन रेकर्ड नेपालले पछि पारेको हो।

सबैभन्दा छिटो शतक : खेलमा देब्रे हाते ब्याट्सम्यान कुशल मल्लले ३४ बलमा शतक पुरा गर्दै विश्वरेकर्ड बनाए। यस अघि अस्ट्रेलियाका डेभिड वार्नर, भारतका रोहित शर्मा र चेज रिपब्लिकका एस विक्रमसेकराले ३५ बलमा शतक बनाउदै यो रेकर्ड बनाएका थिए जसलाई कुशलले पछि पारेका हुन्।

सबैभन्दा छिटो अर्धशतक : युवराज सिंहले २००७ मा इंग्ल्यान्ड विरुद्ध बनाएको १२ बलको अर्धशतकको रेकर्ड तोड्दै दिपेन्द्र ऐरीले नयाँ विश्वरेकर्ड बनाएका छन्। ऐरीले मात्र ९ बलमा अर्धशतक पुरा गरेका हुन्। यस क्रममा उनले सामना गरेको पहिलो ६ बलमा छक्का गरेका थिए।

सबैभन्दा ठूलो साझेदारी : खेलमा तेश्रो विकेटको लागि कुशल मल्ल र रोहित पौडेलले गरेको १९३ रनको साझेदारी टि-ट्वान्टी अन्तर्राष्ट्रियमा तेश्रो विकेटको लागि सबैभन्दा ठूलो साझेदारी हो। न्युजिल्यान्डका ग्लेन फिलिप्स र डेभोन कन्वेले वेस्टइन्डिज विरुद्ध २०२० मा १८४ रनको साझेदारी गरेका थिए जुन रेकर्ड टुटेको हो।

सबैभन्दा ठूलो रन अन्तरको जित : नेपालको २७३ रनको जित टि-ट्वान्टी अन्तर्राष्ट्रियमा सबैभन्दा ठूलो रन अन्तरको जित हो। यस अघि यो रेकर्ड चेज रिपब्लिकको नाममा थियो जसले २०१९ मा टर्कीलाई २५७ रनले पराजित गरेको थियो।

सर्वाधिक छक्का : नेपालले खेलमा प्रहार गरेको २६ वटा छक्का टि-ट्वान्टी अन्तर्राष्ट्रिय इतिहासकै एकै इनिंग्समा प्रहार भएको सर्वाधिक छक्का हो। यस अघि यो रेकर्ड अफगानिस्तानको नाममा थियो जसले आयरल्याण्ड विरुद्ध २०१९ मा २२ छक्का प्रहार गरेको थियो।



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नेपाली कुस्ती टोलीले भारतमा प्रशिक्षण गर्ने

काठमाडौं । चीनको हाङझाउमा हुने १९औं एसियाली खेलकुदको थप तयारी गर्न नेपाली कुस्ती टोली वैदेशिक प्रशिक्षणका लागि भारतको उत्तर प्रदेश जाने भएको छ ।
४ खेलाडीसहित ५ सदस्यीय टोलीलाई राष्ट्रिय खेलकुद परिषद् (राखेप)का सदस्यसचिव टंकलाल घिसिङले आइतबार बिदाइ गरे ।

भारत जान लागेका चारै खेलाडी १३ औं दक्षिण एसियाली खेलकुदका पदक विजेता हुन् । एसियाली खेलकुदमा पुरुषतर्फ सुरेश चुनारा (७४ केजी) र राज यादव (१ सय २५ केजी) तथा महिलातर्फ शिवाङगी दुवे (५७ केज) र सुशिला चन्द (६२ केजी)  ले नेपालको प्रतिनिधित्व गर्नेछन् । 

 १३ औं सागमा सुरेश र राजले कांस्य तथा बाँकी दुई खेलाडीले रजत जितेका थिए । टोलीको प्रशिक्षकमा मुमताज अली इद्रिसी छन् ।

टोली सोमबार काठमाडौंबाट नेपालगन्ज जाने छ । नेपालगन्जमा एक साताको प्रशिक्षणपछि टोली उत्तर प्रदेश जाने छ । उत्तर प्रदेशको नन्दनीनगरस्थित टाटा मोटर्स एकेडेमीमा भदौसम्म गर्ने  प्रशिक्षण मुख्य प्रशिक्षक इद्रिसीले जानकारी गराए ।

खेलाडी सुरेशले पहिलो पटक अन्तर्राष्ट्रिय प्रतियोगिताको तयारीका लागि वैदेशिक प्रशिक्षणमा जान पाउदा सबै खेलाडी उत्साहित भएको प्रतिकृया दिए ।
 



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२६ जना सहसचिवको सरुवा (सूचीसहित)

काठमाडौँ, ७ साउन ।  संघीय मामिला तथा सामान्य प्रशासन मन्त्रालयले २६ जना सहसचिवहरुको सरुवा गरेको छ ।

एक प्रमुख जिल्ला अधिकारी र दुई महानगरपालिकाको प्रमुख प्रशासकीय अधिकृतसहित आइताबार मन्त्रालयले २६ जना सहसचिवको सरुवा निकालेको हो ।

जाजरकोटका प्रमुख जिल्ला अधिकारी रामकुमार महतोको संघीय मामिला मन्त्रालयमा सरुवा भएको छ । यस्तै ललितपुर महानगरपालिकाका प्रमुख प्रशासकीय अधिकृत गणेश अर्यालको गृह मन्त्रालयमा सरुवा भएको छ ।

अर्यालको ठाउँमा पोखरा महानगरपालिकाका प्रमुख प्रशासकीय अधिकृत विरेन्द्रदेव भारती आएका छन् । पोखरा महानगरपालिकामा कर्णाली प्रदेशको अर्थ सचिव श्याम कृष्ण थापा सरुवा भएका छन् ।

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आईबीए अध्यक्षले आईओसी नेतृत्वलाई "खेलकुदमा वेश्या" भनेका छन् र भ्रष्टाचारको आराेप लगाए

अन्तर्राष्ट्रिय बक्सिङ संघ (आईबीए) का अध्यक्ष उमर क्रेमलेभले अन्तर्राष्ट्रिय ओलम्पिक कमिटी (आईओसी) को नेतृत्वलाई "राजनीतिमा संलग्न हुने खेलकुदमा वेश्याहरू" भनेर वर्णन गर्दै कडा हमला गरेका छन्।

क्रेमलेभले थोमस बाचले 2013 मा अध्यक्षको भूमिका ग्रहण गरेदेखि "आईओसीमा भ्रष्टाचार प्रवेश गरेको" दाबी गरे र बक्सिङ वेबसाइट NotiFight को एक रिपोर्टमा "एथलीटहरूको हितको रक्षा नगरेको" भनेर संगठनको आलोचना गरे।

आईबीए जुनमा असाधारण आईओसी सत्रमा मतदान पछि ओलम्पिक आन्दोलनबाट निष्कासित हुने पहिलो प्रशासक निकाय बनेपछि रूसी अधिकारीको घृणित टिप्पणीहरू आए।

आईओसीको प्रतिवेदनले आर्थिक, सुशासन र प्रतिस्पर्धाको विश्वसनीयताका कारणले सन् २०१९ मा लगाइएको निलम्बन हटाउनका लागि तोकिएका सर्तहरू पूरा गर्न असफल भएको निष्कर्ष निकालेको छ।

बैठकले पेरिस 2024 र लस एन्जलस 2028 को कार्यक्रममा आईओसीले बक्सिङको स्थान पुष्टि गरेको पनि देख्यो।

निकारागुवाको भ्रमणको क्रममा बोल्दै, क्रेमलेभले बाख र आईओसीको कार्यकारी बोर्डका सदस्यहरूलाई मार्नु अघि आईबीएले आफ्नो ओलम्पिक स्थिति पुन: प्राप्त गरेकोमा आफ्नो आशावाद दोहोर्याए।

"बक्सिङ अझै पनि ओलम्पिक खेलको कार्यक्रम (sic) मा छ," क्रेमलेभले NotiFight को रिपोर्टमा भने।

"उनीहरूले आईबीएको मान्यता बन्द गरे, किनभने उनीहरूलाई डर छ कि आईओसीको सदस्य भएर आईबीएले अन्तर्राष्ट्रिय महासंघको रूपमा यसको धेरै राम्रो नतिजा दिनेछ।

IOC अध्यक्ष थोमस बाचलाई IBA नेता उमर क्रेमलेभले संगठन भित्र "भ्रष्टाचार" को अध्यक्षता गरेको आरोप लगाएका छन् ।

"म विश्वस्त छु कि हामीले आईओसीबाट फेरि मान्यता पाउनेछौं।

"म पक्का छु कि हामी यसलाई प्राप्त गर्न जाँदैछौं।

"उनीहरूले बुझ्नु पर्छ कि, हाम्रो लागि, ओलम्पिक खेलहरू पनि महत्त्वपूर्ण छन्।

"हामीलाई कुनै समस्या छैन, ओलम्पिक आन्दोलनसँग कुनै विवाद छैन।

"हामीलाई आईओसीका केही अधिकारीहरूसँग समस्या छ, जो अध्यक्ष थोमस बाक र उनको टोली हुन्।

"किनभने तिनीहरू खेलकुदमा वेश्याहरू जस्तै हुन्, जो राजनीतिमा संलग्न हुन्छन् र खेलाडीहरूको हितको रक्षा गर्दैनन्।"

क्रेमलेभले संगठनको समस्याको लागि बारम्बार पूर्व अध्यक्ष सीके वू - पूर्व आईओसी कार्यकारी बोर्ड सदस्य जसले 2006 र 2017 को बीचमा प्रशासकीय निकायको नेतृत्व गरेका थिए - लाई दोष दिएका छन्।

wu पछि "घोर लापरवाही र आर्थिक कुप्रबंधन" को लागि IBA द्वारा आजीवन प्रतिबन्ध लगाइएको थियो तर IOC द्वारा स्वीकृत गरिएको छैन, जसलाई उनले २०२० मा सदस्यको रूपमा छोडेका थिए, चिकित्सा सल्लाह उद्धृत गर्दै।

जुनमा अमेरिकी बक्सिङ कन्फेडेरेसन कन्टिनेन्टल फोरममा बोल्दै, क्रेमलेभले आईओसी लगायत व्यापक रूपमा निन्दा गरिएका टिप्पणीहरूमा वूलाई "बक्सिङ नष्ट गर्न" को लागि "शट" हान्नु पर्ने दाबी गरे।

क्रेमलेभले "कुनै पनि द्वन्द्व टेबुलमा बसेर र अफिसमा फोहोर लुकेर बसेर समाधान गर्न सकिन्छ" भनी जोड दिएर धेरै पटक आईओसीसँग बैठक बोलाउन आग्रह गरेको बताए।

उनले सन् १९८० देखि २००१ सम्म आइओसीको नेतृत्व गर्ने जुआन एन्टोनियो समारान्चको अध्यक्षताको पनि प्रशंसा गरे लस एन्जलस 2028 को लागि खेलकुद कार्यक्रममा बक्सिङ पुष्टि भएको छ र IBA अध्यक्ष उमर क्रेमलेभ विश्वस्त छन् कि उनको संगठनले ओलम्पिकमा खेलकुद सञ्चालनको जिम्मेवारी पुन: प्राप्त गर्नेछ ।

"समरांच एक खेलकुद नेताको उत्कृष्ट उदाहरण थियो, जसले सबै खेलाडी, सबै खेलकुद र सबै राष्ट्रिय संघहरूको हितका लागि लडे," क्रेमलेभले थपे।

"र हामीलाई थाहा छ, थोमस बाकको अध्यक्षतामा, भ्रष्टाचार आईओसीमा प्रवेश गर्यो।

"म यो भन्न डराउँदिन, तिनीहरू मैले के भन्छु भनेर डराउँछन्।

"किनभने हाम्रो प्रतिष्ठा छ र तिनीहरू डराउँछन् कि सत्य बाहिर आउला।

"उनीहरू मलाई भेट्न पनि डराउँछन्।

"मैले धेरै पटक IOC नेताहरूसँग व्यक्तिगत भेटघाट गर्न अनुरोध गरेको छु, धेरै प्रश्नहरूको जवाफ पाउन, र जवाफमा उहाँले मलाई IBA मा आर्थिक समस्या छ भन्नुभयो, र म भन्छु 'हामीले राष्ट्रिय महासंघ र खेलाडीहरूलाई मद्दत गर्यौं भने ती समस्याहरू कहाँ छन्। '।

"यो हुन सक्छ कि तिनीहरू [आईओसी] को आर्थिक समस्याहरू छन्, किनभने तिनीहरूले ओलम्पिक खेलहरूमा भाग लिने एथलीटहरू वा संघहरूलाई कुनै समर्थन गर्दैनन्।"

बाचले आईओसी सत्रलाई बताए कि उनको संगठन आईबीए संग "अत्यन्त गम्भीर समस्या" थियो, जबकि यसको महानिर्देशक क्रिस्टोफ डे केपरले निर्णय गरे कि शरीर "नो रिटर्नको बिन्दुमा पुग्यो"।

आईबीएलाई निष्कासन गर्ने संगठनको कार्यकारी बोर्डको प्रस्तावलाई आइओसीको बैठकमा जम्मा ६९ सदस्यले समर्थन गरे पनि विपक्षमा एक मतले मात्रै मतदान भयो ।

यो एक अभूतपूर्व निर्णय थियो किनकि यसअघि कुनै पनि खेलकुद प्रशासकीय निकायलाई IOC द्वारा निष्कासन गरिएको थिएन।

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विवादित संवाद हटाएपछि ‘आदिपुरुष’ले पायो नेपालमा प्रदर्शन अनुमति

काठमाडौं । अन्ततः विवादित संवाद फिल्मबाट हटाइएपछि नेपाली सेन्सर बोर्डले दक्षिण भारतीय फिल्म ‘आदिपुरुष’लाई प्रदर्शन अनुमति दिएको छ । बिहीवार राती ८ बजे सेन्सर बोर्डका अध्यक्ष अनिलकुमार दत्तले हस्ताक्षर गरेको अनुमति पत्र वितरकलाई दिएका हुन् ।

फिल्ममा समावेश ‘जानकी भारतकी छोरी हुन्’ भन्ने वाक्यमा आपत्ति जनाउँदै बिहीवार अपरान्ह बोर्डले प्रदर्शन अनुमति दिन अस्वीकार गरेको थियो । भारतीय वितरकले फिल्मबाट विवादित वाक्य हटाएर नेपाल पठाएपछि मात्र बोर्डले अनुमति दिएको हो ।

सेन्सर बोर्डको अनुमतिपछि ‘आदिपुरुष’ शुक्रबार नेपालमा रिलिज हुने पक्का भएको छ । तर, काठमाडौं महानगरका मेयर बालेन शाहको फेसबुक स्टाटसले भने संशय पैदा गराएको छ । उनले भारतमा समेत उक्त विवादित वाक्य तीन दिनभित्र नहटाए कुनै पनि हिन्दी फिल्म काठमाडौं महानगरमा प्रदर्शन अनुमति नदिने उल्लेख गरेका छन् ।

बालेनको सचिवालयले पनि आफूहरुले तीन दिन प्रतीक्षा गर्ने तर उक्त वाक्य हटाएर माफी नमागेसम्म काठमाडौंमा कुनैपनि हिन्दी फिल्म प्रदर्शन गर्न अनुमति नदिने र सबै हललाई यसबारे पत्राचार गरिने उल्लेख गरेको छ । प्रभास र कृति सेनन स्टारर आदिपुरुष रामायणको कथावस्तुमा आधारित छ । यो फिल्मलाई नेपालमा ब्यांकटेस इन्टरटेनमेन्टले रिलिज गर्न लागेको हो ।

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