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प्रचण्ड कम्युनिष्ट शासनतर्फ अग्रसर,ओली भारतसँग नजिक : भाजपाकाे विश्लेषण


२०७७, मंसिर २१, आइतबार

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ललितपुर  । भारतीय सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)ले नेपालको राजनीतिक अवस्थाका विषयमा आफ्नो धारणा सार्वजनिक गरेको छ । भाजपाको मातृ संगठन राष्ट्रिय स्वयम् सेवक संघ (आरएसएस)ले आफ्नो मुखपत्र ‘पाञ्चजन्य’मा नेपालको राजनीतिक घटनाक्रमका विषयमा विश्लेषण गरिएको छ । पाञ्चजन्यलाई भाजपाकै मुखपत्रकोरुपमा लिने गरिन्छ । भाजपाले आफ्नो राजनीतिक विचार यहीँ मुखपत्रबाट सार्वजनिक गर्ने गरेको छ ।

भारतमा आरएसएस अन्तरगत नै भारतीय जनता पार्टी क्रियाशील हुन्छ । एक सय भन्दा धेरै संगठनमध्ये भाजपा पनि एक हो । भाजपालाई आरएसएसले नै नियन्त्रण गर्छ । भाजपाले गर्ने हरेक निर्णय पहिले आरएसएसबाट पारि भएर आउने गरिन्छ । त्यतीमात्र होइन, भाजपाको महासचिव पद् पनि आरएसएसबाटै चयन हुने गरेको छ । भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी आरएसएसका प्रचारक हुन् । नेपालको राजनीतिका विषयमा लेखक रहेका पंकज दास पनि आरएसएसका प्रचारक हुन् । भाजपाका लागि यो मुखपत्रमा उल्लेख गरिएका कुरा मार्गदर्शक बन्ने गरेको छ ।

हालै प्रकाशित मुखपत्रमा ‘चीन के चगुंल मे नेपाल की राजनीति’ शीर्षकमा नेपालको राजनीतिका विषयमा काठमाडौं आएर पंकज दासले विश्लेषण गरेको उल्लेख छ । लेखमा नेपालको राजनीति चीनको नियन्त्रणमा रहेको दावी गरिएको छ । लेखमा प्रधानमन्त्रीसमेत रहेका नेकपा अध्यक्ष केपी शर्मा ओली भारततर्फ ढल्केको उल्लेख गरिएको छ भने नेकपाका कार्यकारी अध्यक्ष पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ कम्युनिष्ट शासन स्थापना गरेर नेपालको प्रथम प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति बन्ने दाउमा रहेको उल्लेख छ ।

नेपालमा प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपतिको व्यवस्थाका लागि संविधान संशोधन गर्न दुई तिहाइ बहुमतको आवश्यकता पर्नेमा १५ जना सांसद नेकपालाई अपुग हुने भएकाले प्रचण्डकै योजनामा उपेन्द्र यादव नेतृत्वको तत्कालीन संघीय समाजवादी फोरम नेपाललाई सरकारमा सहभागी गराइएको कुरा लेखमा लेखिएको छ । मुखपत्रले प्रचण्डकै योजनामा समाजवादी र नयाँशक्तिबीच एकता भएको दावी गरेको छ ।

चीनले नेपालमा साइलेन्ट डिप्लोमेसी गरिरहेको उल्लेखगर्दै मुखपत्रमा राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारीले चिनियाँ योजनालाई अस्वीकार गरेको र प्रधानमन्त्री ओली पनि भण्डारीकै पक्षमा रहेको मुखपत्रमा उल्लेख छ । त्यहीँ बलमा प्रचण्डविरुद्ध ओली लडिरहेको दाबी गरिएको छ । मुखपत्रमा ओलीकै अगुवाइमा नेपाल र भारतबीच राम्रो सम्बन्ध स्थापना भइरहेको तर, प्रचण्डले यो कुरा पचाउन नसकेको पनि निष्कर्ष भाजपाको छ । नेकपा विभाजनका लागि चीनले आफ्नो रक्षामन्त्री नेपाल भ्रमणमा पठाएको जनाइएको छ ।

हेर्नुस् लेखको हिन्दी संस्करण
वामपंथ की तरह ही नेपाल में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की अंदरूनी राजनीति के दो चेहरे हैं। बाहर से देखने पर भले ही लगे कि कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) का आंतरिक संघर्ष सत्ता हासिल करने के लिए है। पर इसके पीछे एक और चेहरा है, जिसे पहचानना बहुत जरूरी है। नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद हुए पहले आम चुनाव में वाम दलों के गठबंधन को करीब दो तिहाई बहुमत मिला। लेकिन दो साल में ऐसा क्या हुआ कि पार्टी में टूट की नौबत आ गई? क्यों कर पार्टी के दो शीर्ष नेता एक-दूसरे पर खुलेआम आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे? दल में वैमनस्यता इतनी बढ़ गई कि दो गुटों की झड़प में पार्टी इकाई सचिव की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। हत्या का आरोपी सत्तारूढ़ पार्टी के विरोधी गुट का एक नेता व पूर्व सांसद है। सभा सम्मेलन में विरोधी गुट की नारेबाजी, काले झंडे दिखाना तो आम बात है। इसके पीछे के मूल कारण को समझने के लिए नेकपा के चुनावी घोषणापत्र के एक बिंदु पर ध्यान देना होगा, जिसे महत्वहीन समझा गया।
नए संविधान के लागू होने के बाद आम चुनाव से पहले नेपाल में दो वामपंथी पार्टियां थीं। पहली, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत माले) जिसे नेकपा (एमाले) नाम से जाना जाता था। इसके अध्यक्ष के.पी. शर्मा ओली थे। दूसरी थी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), जिसके अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ थे। दोनों नेताओं ने साथ चुनाव लड़ने और चुनाव के बाद पार्टी एकीकरण के लिए समझौता किया। हालांकि इस समझौते में देश की शासन व्यवस्था को लेकर मतभेद कायम रहा। दोनों नेता इस बात पर सहमति के बाद आगे बढ़े कि चुनाव के बाद पार्टी के महाधिवेशन में मतभेद का निबटारा हो जाएगा। ओली के नेतृत्व वाली एमाले देश में बहुदलीय जनवाद के सिद्धांत व संसदीय प्रणाली, संसद के प्रति उत्तरदायी प्रधानमंत्री तथा मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की समर्थक है। वहीं, प्रचंड की अगुआई वाली माओवादी पार्टी चीन की तर्ज पर जनता का जनवादी सिद्धांत, प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति शासन प्रणाली व चीन की ही तर्ज पर एकदलीय शासन व्यवस्था की पैरोकार है। सत्तारूढ़ दल में मौजूदा विवाद इसी वजह से है। प्रचंड नेपाल के प्रथम प्रत्यक्ष निर्वाचित राष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं। इसलिए उनकी सारी कोशिश इसी बात पर केंद्रित है कि कैसे संविधान में संशोधन किया जाए ताकि बहुदलीय व्यवस्था खत्म कर देश में एकदलीय शासन प्रणाली को लागू किया जा सके।
आम चुनाव में नेकपा को भारी बहुमत मिलने के बाद प्रचंड ने अपनी योजना पर काम शुरू कर दिया। संविधान में संशोधन के लिए सत्तारूढ़ दल को दो तिहाई बहुमत की जरूरत थी, लेकिन 15 सांसद कम थे। लिहाजा प्रचंड ने ओली की इच्छा के विरुद्ध अपने करीबी पूर्व माओवादी नेता एवं तत्कालीन संघीय समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र यादव को सरकार में शामिल किया। फिर अपने पूर्व सहकर्मी, पूर्व माओवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. बाबूराम भट्टराई को उपेंद्र की पार्टी में शामिल करा दिया ताकि संविधान में संशोधन किया जा सके। इसके बाद प्रचंड प्रधानमंत्री ओली पर संविधान में संशोधन के लिए दबाव डालने के साथ राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने की सीमा को 5 से बढ़ाकर 7 प्रतिशत करने पर जोर देने लगे ताकि देश में केवल दो ही दल रहें- एक कम्युनिस्ट तथा दूसरा नेपाली कांग्रेस। संविधान में संशोधन कर प्रचंड राष्ट्रपति बनने के इच्छुक हैं ताकि सत्ता पर उनका पूरा नियंत्रण रहे। नेपाल की न्याय व्यवस्था में वामपंथियों का वर्चस्व इतना बढ़ गया है कि अगले तीन दशक तक कम्युनिस्ट पार्टी का ही कोई कार्यकर्ता प्रधान न्यायाधीश बनेगा। प्रचंड के लिए यह एक सुनहरा अवसर है, इसलिए उन्होंने सत्ता का नेतृत्व संभालने के अपने ही समझौते को ठुकरा दिया। प्रचंड ने पहले ओली को मनाने के लिए हरसंभव प्रयास किया, उन पर दबाव भी बनाया। जब ओली नहीं माने तो वे सरकार को बदनाम करने और उसे असफल साबित करने में जुट गए।
चीन की योजना
दरअसल, नेपाल में वामपंथी दलों का एकीकरण चीन की एक वृहत योजना का हिस्सा है। वह शुरू से ही नेपाल पर आधिपत्य जमाना चाहता था, पर भारत व नेपाल पर इसका प्रभाव, खुली सीमा की साझा विरासत, सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, पारिवारिक, राजनीतिक व कूटनीतिक संबंध इसमें सबसे बड़ी बाधा हैं। जब तक ये संबंध कमजोर नहीं होते, नेपाल में चीन की कोई चालाकी नहीं चलेगी। इसलिए चीन ने सुनियोजित तरीके से नेपाल के वामपंथी दलों व उनके शीर्ष नेताओं को भारत सरकार, नीति निर्माताओं व नेपाल में प्रभाव रखने वाली भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के करीब जाने और उन्हें विश्वास में लेकर अपना काम निकालने दिया। इसमें नेपाल के वामपंथी नेताओं, भारत के तत्कालीन सत्ता के गलियारों में दखल रखने वाले कथित वामपंथी बुद्धिजीवियों, स्तंभकारों, पत्रकारों एवं जेएनयू के शिक्षकों की भूमिका अहम रही। दिल्ली के साउथ ब्लॉक में बैठने वाले अधिकांश बाबू यह समझ ही नहीं पाए कि नेपाल के वामपंथी नेता बार-बार उनके पास क्यों आ रहे हैं? चाहे वे प्रधानमंत्री ओली हों या पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड, माधव नेपाल या भट्टराई, किसी समय ये सभी रॉ के करीब थे। एक दशक पूर्व कही गई एक बात आज अक्षरश: सही साबित हो रहीहै। जब-जब भारत को इनके सहयोग या समर्थन की जरूरत पड़ी, तब-तब इन्होंने उसे धोखा दिया। 
कहा जाता है कि नेपाल में चीन ‘साइलेन्ट डिप्लोमेसी’ (मूक कूटनीति) करता है। लेकिन वह परदे के पीछे अपनी शातिर चाल जारी रखता है। चीन शुरू से ही नेपाल में भारत विरोधी राष्ट्रवाद को हवा देता रहा है। पहले उसने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के जरिए यह काम किया, पर जब से नेपाल में यह कमजोर हुई, चीन खुलकर सामने आ गया। नेपाल में भारत विरोधी माहौल को हवा दे उसने दोनों वामपंथी दलों का चुनावी गठबंधन करा दिया। इस सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार के जरिए चीन अपने उद्देश्य में कामयाब रहा तथा भारत के साथ नेपाल के हर संबंध पर प्रहार किया जाने लगा। बिम्सटेक सम्मेलन में घोषणा के बावजूद नेपाली सेना को भारत में होने वाले बिम्सटेक देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास से दूर रखना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा क्षेत्रीय मुक्त व्यापार व परिवहन को बढ़ावा देने के लिए बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, इंडिया, नेपाल) की परिकल्पना पर असहयोग कर रिश्तों में खटास लाने का प्रयास हुआ। भारत के सुझाव के बावजूद चीन की महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड पर हस्ताक्षर कर नेपाल ने भारत की सुरक्षा को चुनौती देने की कोशिश की। भारत के साथ बेवजह सीमा विवाद खड़ा कर कूटनीतिक संबंधों में दरार, कोरोना महामारी की आड़ में खुली सीमा को बंद कर, भगवान् श्रीराम के जन्मस्थल को लेकर विवादित बयान देकर और पशुपतिनाथ मंदिर के मूलभट्ट को बदलने का फैसला कर दोनों देशों के बीच धार्मिक, आध्यात्मिक और पारंपरिक संबंधों को बिगाड़ने के प्रयास हुए। नेपाल में ब्याही जाने वाली भारतीय बेटियों को नागरिकता के अधिकार से वंचित करने वाला कानून तो दोनों देशों के पारिवारिक संबंधों को ही खत्म करने की साजिश थी। वास्तव में नेपाल पर अपना प्रभुत्व जमाने व भारत-नेपाल रिश्तों में दरार पैदा करने के लिए चीन ने शांत कूटनीति की जगह आक्रामक कूटनीति अपनाई।
चीन का मकसद नेपाल में एकदलीय शासन व्यवस्था, अपनी तर्ज पर जनवादी गणतंत्र व्यवस्था स्थापित करने के साथ सभी राजनीतिक दलों पर अपना दबदबा कायम करना है। इसी के तहत पहले उसने नेकपा के साथ एक लिखित समझौता किया। इसके लिए प्रचंड ने एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया था जिसमें पार्टी के विदेश विभाग प्रमुख माधव नेपाल ने सक्रियता दिखाई। प्रधानमंत्री ओली इसमें मुख्य अतिथि थे। इसी कार्यक्रम में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग प्रमुख सांग तांग व नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांकी को साक्षी मानकर दोनों देशों की कम्युनिस्ट पार्टियां के बीच सहयोग, अनुभव को साझा करने, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा का अवलंबन करने व चीन की ही तर्ज पर शासन व्यवस्था को अपनाने जैसे बिंदुओं पर हस्ताक्षर किए गए। इसी के साथ नेपाल में चीनी राजदूत की अस्वाभाविक सक्रियता बढ़ गई— नेपाल के सत्तारूढ़ दल में ही नहीं, बल्कि सरकार के मंत्रालयों और विभागों में भी। आए दिन यांकी या तो पार्टी के किसी शीर्ष नेता के घर पर होतीं या किसी मंत्रालय में दिखतीं। कूटनीति की सारी सीमाओं को लांघते हुए यांकी का प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति आवास पर बेरोक-टोक आना-जाना सबको अखरने लगा। जब नेपाली मीडिया ने इस पर सवाल उठाना शुरू किया तो धमकी भरे लहजे में विज्ञप्तियां जारी की जाने लगीं। चीनी राजदूत का सरकार पर प्रभाव इतना बढ़ गया कि सीमा विवाद पर नेपाली विदेश मंत्रालय व विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली वही सब बात बोलने लगे जो कि उन्हें चीनी राजदूत की तरफ से कहीं जाती थीं। सरकारी निकाय के प्रामाणिक दस्तावेजों के बावजूद ज्ञवाली ने संसद में बयान दिया कि चीन के साथ नेपाल का सीमा विवाद नहीं है और उसकी एक इंच जमीन पर भी उसकी कब्जा नहीं है। इस तरह की कई घटनाएं हुर्इं, जिससे आम जनता को भी यह लगने लगा कि चीन या चीनी राजदूत ऐसा बर्ताव कर रहे हैं, जैसे नेपाल चीन का एक हिस्सा हो। लिहाजा, नेपाल में चीन के विरुद्ध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया।
भारत से बिगड़ते संबंधों के बीच चीन ने नेपाली राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व प्रचंड सहित कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। शासन व्यवस्था, संसदीय व्यवस्था व निर्वाचन प्रणाली में बदलाव के लिए प्रचंड व ओली के बीच कई बार बातचीत हुई। लेकिन एमाले नेताओं को यह मंजूर नहीं था। राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने, जो एमाले की प्रभावशाली नेता रही हैं और पार्टी में अभी भी उनका काफी प्रभाव है, शासन व्यवस्था के चीनी मॉडल को अपनाने से इनकार कर दिया। ओली को भी इससे बल मिला और उन्होंने अन्य मुद्दों पर प्रचंड से समझौते के बावजूद बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था, संसदीय प्रणाली को छोड़ने से साफ मना कर दिया। इसके बाद देशभर में एमाले के नेता व कार्यकर्ता लामबंद होने लगे और चीन की योजना पर पानी फिरने लगा। इससे चीन नाराज हो गया और उसकी शह पर प्रचंड ने ओली पर आरोपों की झड़ी लगा दी और उनसे इस्तीफा मांगा जाने लगा। तब ओली ने भी पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को करारा जवाब देना शुरू किया।
प्रचंड ने भट्टराई को उपेंद्र यादव की पार्टी में शामिल करने के लिए जेएनयू के संपर्क सूत्र के जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में नेपाल मामलों के प्रभारी एक वरिष्ठ अधिकारी को यह भरोसा दिलाया कि बाबूराम अगर उपेंद्र की पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो इससे ओली कमजोर पड़ जाएंगे और उन्हें अपदस्थ करना आसान हो जाएगा। उस समय तक सीमा विवाद में नेपाल सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से भारतीय विदेश मंत्रालय, रॉ व सरकार की काठमांडू में एक नकारात्मक छवि बन गई थी। लेकिन भारतीय अधिकारी न तो प्रचंड की इस चाल को समझ पाए और न नेपाल में हुए भारत विरोधी प्रदर्शनों के पीछे की सच्चाई का विश्लेषण कर पाए। इसका फायदा उठा प्रचंड भारत में कांग्रेस व वाम गठबंधन के समय के अपने पुराने मित्रों के जरिए भारतीय नीति निर्माताओं को चकमा देने में सफल रहे।
चीन बखूबी जानता है कि अगर वह इस बार चूका तो आने वाले कई वर्षों तक नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी को फिर इतना बहुमत हासिल नहीं होगी। इसलिए वह हर हाल में ओली सरकार को अपदस्थ करना चाहता है। उधर प्रचंड अपने भरोसेमंद उपेंद्र यादव व पूर्व माओवादी मंत्रियों को सरकार से वापस बुलाकर ओली को पद छोड़ने के लिए मजबूर करना चाहते थे, लिहाजा उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल माओवादी नेताओं से साफ शब्दों में कहा कि आप मेरा साथ दीजिए या मंत्री पद से इस्तीफा। इसके बाद अधिकांश नेताओं ने उनके समक्ष समर्पण कर दिया। उधर, प्रचंड ने एक बार फिर दिल्ली को यह झूठा दिलासा देने की कोशिश की कि अगर उन्हें भारत का समर्थन मिला तो वे ओली को अपदस्थ कर सकते हैं। जब ओली को इसका पता चला तो उन्होंने प्रचंड को कमजोर करने के लिए रातोंरात दल विभाजन संबंधी एक अध्यादेश लाकर उनकी पार्टी के 60 प्रतिशत सांसदों को अलग करने का प्रयास किया।
इससे प्रचंड की समझ में आ गया कि अगर पार्टी का बंटवारा हुआ तो उनकी महत्वाकांक्षा कभी पूरी नहीं होगी। इसलिए चीन की सलाह पर उन्होंने एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और रॉ का इस्तेमाल किया और उपेंद्र यादव के सहयोग से ओली को मात देने में कामयाब रहे। इस बार दिल्ली ने भी बिना हालात का विश्लेषण किए प्रचंड पर भरोसा कर लिया, क्योंकि तब तक नेपाल में भारत विरोधी माहौल बनना शुरू हो चुका था।  चूंकि ओली सत्ता में हैं व भारत विरोधी प्रदर्शनों में प्रचंड व माधव नेपाल गुट के ही नेता-कार्यकर्ता शामिल थे, इसलिए बड़ी चालाकी से इसका सारा दोष ओली के सिर मढ़ दिया गया ताकि उनकी जगह प्रचंड को भारत का समर्थन मिले।  प्रचंड की ही योजना के अनुसार उपेंद्र और भट्टराई की पार्टी के विभाजन को न केवल रोका गया, बल्कि प्रचंड के कहने पर एक अन्य मधेशी दल राष्ट्रीय जनता पार्टी का उसमें विलय भी कराया गया। हालांकि दोनों ही विपरीत विचारधारा वाली पार्टियां था। इस विलय में जेएनयू के कुछ कथित वामपंथी बुद्धिजीवी, पत्रकार एवं खुफिया विभाग के पूर्व अधिकारी का सहयोग रहा। इन सबका आकलन वही था जो प्रचंड ने उनको बताया था।
दिल्ली के इस कदम से ओली बौखला गए। इसके बाद शुरू हुआ नक्शा प्रकरण, संविधान संशोधन, सीमा पर नाकाबंदी व वह सब काम हुआ जो नेपाल-भारत के अंदरूनी रिश्तों में आज तक नहीं था। चीन की यही इच्छा थी कि नेपाल सरकार हर वह कदम उठाए जो भारत को परेशान करे। वह इस चाल में काफी हद तक सफल रहा। फिर भी उसका असली एजेंडा पूरा नहीं हो पा रहा था, जिसमें ओली बाधक थे। तब प्रचंड की अगुआई में ओली के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला गया ताकि वे दबाव में आकर सत्ता छोड़ दें। लेकिन ओली पद छोड़ने की बजाए ओली पार्टी विभाजन के लिए तैयार हो गए। पर नेकपा में विभाजन चीन को मंजूर नहीं है, क्योंकि पार्टी विभाजन हुआ तो नेपाल में कम्युनिस्ट सर्वसत्तावाद थोपने की उसकी योजना पूरी नहीं हो सकेगी। चीन ने प्रचंड के जरिए हर पैंतरा आजमाया, पर उसका हर दांव उलटा पड़ रहा है। पार्टी विवाद के चरम पर होने के बीच ही चीनी राजदूत यांकी ने प्रधानमंत्री निवास में जाकर ओली को सत्ता छोड़ने व प्रचंड को सत्ता सौंपने के साथ यह संदेश भी दिया कि बीजिंग को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कि पार्टी का बंटवारा हो। पर अपने हठी स्वभाव के लिए प्रसिद्ध ओली ने यांकी को उसी समय अपने निवास से ‘गेट आउट’ कहते हुए उन पर ‘पर्सना-नॉन-ग्राटा’ (अस्वीकार्य व्यक्ति) लगाकर वापस बीजिंग भेजने की धमकी दे डाली। यही नहीं, उन्होंने चीनी राजदूत के बार-बार राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री निवास, विभिन्न मंत्रालयों में चक्कर काटने और नेताओं के घर जाने पर भी पाबंदी लगा दी। इससे चीन का अपने राजदूत के जरिए नेपाल पर अप्रत्यक्ष शासन चलाने का सपना बुरी तरह टूट गया। 
चीन के साथ साथ ओली के बिगड़े संबंधों और भारत-नेपाल के बीच संबंधों में सुधार के प्रयास, चीन और प्रचंड दोनों के लिए सिरदर्द बन गए हैं। ओली ने पहल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टेलीफोन पर बात की जिससे संवादहीनता समाप्त हुई और औपचारिक-अनौपचारिक वार्ता का दौर शुरू हुआ। ओली ने इसी कड़ी में रॉ प्रमुख सामंत गोयल को बुलाकर गलतफहमी दूर की। फिर भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवाणे को नेपाल आमंत्रित कर वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हुए उन्हें नेपाली सेना के प्रधान सेनापति की मानद पदवी प्रदान की। उधर 26-27 नवंबर को भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला का दौरा तथा दिसंबर मध्य तक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक प्रस्तावित है।
बरसों की जद्दोजहद के बाद नेपाल पर अपनी बनाई हुई पकड़ को कमजोर होते देख चीन का छटपटाना स्वाभाविक है। यही कारण है कि उसने अचानक अपने रक्षा मंत्री को नेपाल भेजने का निर्णय लिया। 29 नवंबर को कुछ घंटों के लिए नेपाल पहुंचे चीनी रक्षा मंत्री फेंग होई उपप्रधानमंत्री के बाद पहले सबसे प्रभावशाली मंत्री माने जाते हैं। हालांकि नेपाल में अभी चीन के रक्षा मंत्री से न तो कोई द्विपक्षीय वार्ता होनी है और न ही रक्षा विभाग के साथ कोई समझौता। इस दौरे का एक ही उद्देश्य है, सत्तारूढ़ दल में विभाजन रोकना तथा नेपाल के शेष राजनीतिक दलों से संबंध बनाना। इसी दौरे की जानकारी देने के लिए बीते दिनों जब यांकी ने ओली से मुलाकात की थी तब इसके कई अर्थ निकाले गए थे। जिस राजदूत ने ओली को पदच्युत करने का आदेशात्मक सुझाव दिया था, उसी ने अब ओली सरकार को लगातार सहयोग देने का आश्वासन देते हुए पार्टी विभाजन नहीं करने का आग्रह किया। यही नहीं, यांकी ने प्रचंड से भी मुलाकात कर कहा कि किसी भी स्थिति में बीजिंग को पार्टी में टूट स्वीकार्य नहीं है। वह ऐसा कोई कदम न उठाएं जिससे ओली को पार्टी विभाजन का मौका मिले। लेकिन उसने ओली पर असक्षम, असफल और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसे संगीन आरोप लगाए हैं।
देखना यह है कि चीन के रक्षा मंत्री के जाने के बाद ओली खुद पर लगे इन आरोपों का क्या जवाब देते हैं, क्योंकि पिछली बार जब पार्टी सचिवालय की बैठक में उन्होंने कहा था कि उन पर लगे एक-एक आरोप का जवाब दिया जाएगा।

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अन्तर प्रदेश राष्ट्रिय खेलकुदमा वागमती पहिलो

मकवानपुर । प्रथम अन्तरप्रदेश राष्ट्रिय खेलकुद प्रतियोगितामा १ सय ४० पदकसहित वाग्मती प्रदेश पहिलो भएको छ । विभागीय टोली सहभागी नभएको यस प्रतियोगिताको समापन आइतबार भएको हो । वागमती पहिलो स्थानमा रहँदा सुदूरपश्चिम दोस्रो, कोशी तेस्रो, गण्डकी चौथो, लुम्बिनी पाँचौं, कर्णाली छैटौं र मधेश प्रदेश सातौं स्थानमा रहे । 

वागमती प्रदेश खेलकुद विकास परिषद्को आयोजनामा चैत २५ बाट सञ्चालन भएको प्रतियोगितामा पुरुष फुटबलबाहेकको सबै खेल छिमेकी जिल्ला चितवनको भरतपुरमा सञ्चालन भएको थियो ।

हेटौंडा–६ स्थित गौरीटारमा भएको पुरुष फुटबलको फाइनलमा आइतबार कोशी प्रदेशले स्वर्ण पदक जित्न सफल भयो । कोशीले वागमतीलाई १–० गोलअन्तरले पराजित गर्‍यो । कोशीका लागि एक मात्र निर्णायक गोल निखिल तामाङले खेलको दोस्रो हाफमा फ्रिकिकमार्फत गरे ।

प्रतियोगितामा ६१ स्वर्णसहित ४२ रजत र ३६ कांस्य गरी १ सय ३९ पदक जित्दै प्रथम स्थान हाासिल गरेको वागमतीलाई मुख्यमन्त्री शालिकराम जम्कट्टेलले ट्रफी प्रदान गरेका थिए । उनले प्रतियोगितालाई आगामी संस्करणबाट थप व्यवस्थित र प्रतिस्पर्धात्मक बनाउँदै लैजाने प्रतिबद्धतासमेत जनाए । वागमतीले महिला भलिबलसहित बक्सिङ र करातेमा ९/९, तेक्वान्दो र एथलेटिक्समा ७/७, पौडीमा २७ र ब्याडमिन्टनमा एउटा स्वर्ण पदक जितेको हो ।

सुदूरपश्चिम २१ स्वर्ण, २१ रजत र २९ कांस्य गरी कुल ७१ पदकसहित दोस्रो स्थानमा रहँदा तेस्रो स्थानको कोशी प्रदेशले १६ स्वर्ण २३ रजत र ३६ कांस्य गरी ७५ पदक जितेको छ । गण्डकी प्रदेशले ११ स्वर्ण, १८ रजत र २० कांस्य गरी जम्मा ४९ पदक जितेको छ । लुम्बिनीले ११ स्वर्ण, १६ रजत र २८ कांस्य गरी ५५ पदक जित्यो भने कर्णाली प्रदेशले ११ स्वर्ण, १० रजत र २४ कांस्य गरी ४५ पदक जितेको हो । अंक तालिकाको पुछारमा रहेको मधेश प्रदेशले कुल ३ स्वर्ण, ३ रजत र १५ कांस्य गरी २१ पदक जितेको छ ।

प्रतियोगितामा विभिन्न खेलको लागि ७ वटा प्रदेशका १ हजार ७ सय ८५ जना खेलाडी, प्रशिक्षक, प्राविधिक टिम, निर्णायक र खेलाडी गरी २ हजार ७ सय ३० जनाले सहभागिता जनाएका थिए ।



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अन्तर प्रदेश राष्ट्रिय खेलकुद आइतबार देखि सुरुहुने

काठमाडौं । बागमती प्रदेश सरकार, सामाजिक विकास मन्त्रालय र प्रदेश खेलकुद विकास परिषद्, बागमती प्रदेशको संयुक्त आयोजनामा प्रथम अन्तरप्रदेश राष्ट्रिय खेलकुद आइतबारदेखि हुने भएको छ ।

प्रदेश खेलकुद विकास परिषद्, बागमतीका सदस्य–सचिव सूर्यलाल भण्डारीले प्रतियोगिताको तयारी अन्तिम चरणमा पुगेको जानकारी गराए ।

प्रतियोगिताको उद्घाटन चितवनको भरतपुरस्थित गौतम बुद्ध अन्तर्राष्ट्रिय क्रिकेट रंगशालामा आइतबार हुनेछ। प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’ ले प्रतियोगिताको उद्घाटन गर्ने कार्यक्रम रहेको छ ।

प्रतियोगितामा एथलेटिक्स, भलिबल, फुटबल, कराते, तेक्वान्दो, बक्सिङ, पौडी, ब्याडमिन्टन र क्रिकेट गरी ९ खेलको प्रतिस्पर्धा हुनेछ । पुरुष फुटबल बाहेक सबै खेल चितवनमा हुनेछ । पुरुष फुटबल हेटौँडास्थित गौरीटार रंगशालामा हुनेछ ।

प्रतियोगितामा १ सय ३६ स्वर्ण, १ सय ३६ रजत र १ सय ८४ कांस्यका लागि प्रतिस्पर्धा हुनेछ। प्रतियोगितामा सातै प्रदेशका १ हजार ५ सय ४७ खेलाडी सहभागी हुने बताइएको छ ।

शीर्ष तीन स्थान हात पार्नेले क्रमशः ५ हजार, ४ हजार र ३ हजार नगद पुरस्कार प्राप्त गर्ने छन् । हरेक खेलका उत्कृष्ट खेलाडीलाई १० हजार नगदबाट पुरस्कृत गरिने छ। टिम च्याम्पियनलाई चाँदीको रनिङ शिल्ड प्रदान गरिने छ ।

प्रतियोगिता सञ्चालन गर्न करिब १२ करोड खर्च हुने आयोजकले जनाएको छ । प्रतियोगिताको समापन बैशाख १ गते गौरीटार रंगशालामा हुनेछ ।



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सुष्मा र दीपक सर्वोत्कृष्ट खेलाडी

काठमाडौं । नेपाली खेलकुदको कार्यकारी निकाय राष्ट्रिय खेलकुद परिषद् (राखेप) को ६० औं वार्षिकोत्सवमा बुधबार सुष्मा र दीपकसहित १८ जना बुधबार सम्मानित भएका छन् ।

भृकुटीमण्डपस्थित राष्ट्रिय सभागृहमा भएको कार्यक्रममा राखेपले विभिन्न ६ विधामा १८ जनालाई सम्मान गरेको हो । ५ खेलाडी (१ पारासहित), समान १–१ प्रायोजक, स्थानिय तह र राष्ट्रिय खेल संघ, २ खेल पत्रकार तथा ८ कर्मचारी (२ करारसहित) लाई सम्मान गरिएको‌ छ।

सिनियरको पुरुषमा एथलेटिक्सका दीपक र बक्सिङकी सुष्माले ट्रफीसहित समान १ लाख रुपैयाँ प्राप्त गरे ।
गत वर्ष नवौं राष्ट्रिय खेलकुदको १० हजार किलोमिटर दौडमा राष्ट्रिय कीर्तिमानसहित स्वर्ण जितेका दीपक नेपालमै भएको १६ औं एसियाली क्रसकन्ट्री एथलेटिक्सका दोहोरो स्वर्ण विजेता हुन् ।

दीपकले दोश्रो राइट टु प्रोटिन हाफ म्याराथन, प्रधानसेनापति कप र लुम्बिनी हाफ म्याराथनमा स्वर्ण तथा कान्तिपुर हाफ म्याराथनमा रजत जितेका थिए

सुष्माले थाइल्यान्डको बैंककमा भएको एएसबीसी यु–२२ एसियाली महिला बक्सिङ च्याम्पियनसिपमा रजत जित्दै इतिहास रचेकी थिइन् । नेपाली बक्सिङ खेलाडीले कुनैपनि एसियाली स्तरको बक्सिङमा रजत जितेको अहिलेसम्मकै पहिलो हो । सुष्माले नवौं राष्ट्रिय खेलकुदको ४८ केजीमा पनि स्वर्ण जितेकी थिइन् ।

जुनियरको पुरुषमा क्रिकेटका अर्जुन कुमाल र महिलामा पौडीकी डुवाना लामाले सर्वोत्कृष्ट खेलाडीको अवार्ड हात पारे । दुवैलाई जनही ५० हजार रुपैयाँ र ट्रफी प्रदान गरियो ।

नेपाललाई आईसीसी यु–१९ विश्वकपमा छनोट गराउन भूमिका खेल्ने एक मुख्य खेलाडी अर्जुन यु–१९ मा दुई शतक प्रहार गर्ने खेलाडी हुन् । डुवानाले नवौं राष्ट्रिय खेलकुदमा उत्कृष्ट प्रदर्शन गर्दै ९ स्वर्ण र १ रजत जितेकी थिइन् ।

पारा एथलिट खेलाडीको अवार्ड पौडीका भीमबहादुर कुमालले जिते । गत वर्ष भएको सुरेन्द्र स्मृति पारा पौडी प्रतियोगिताको ५० मिटर फ्रि स्टायलमा भीमले राष्ट्रिय कीर्तिमानसहित स्वर्ण जितेका थिए ।

खेल क्षेत्रमा उत्कृष्ट कार्य गरेवापत नवलपरासीको मध्यविन्दु नगरपालिकालाई उत्कृष्ट स्थानिय तह तथा नेपाल भलिबल संघलाई उत्कृष्ट राष्ट्रिय खेल संघका रुपमा पुरस्कृत गरियो । मध्यविन्दुका मेयर भिमलाल अधिकारी तथा भलिबल संघका अध्यक्ष जितेन्द्रबहादुर चन्दले अवार्ड ग्रहण गरे ।

कर्मचारीको प्रशासनिकतर्फ नायब वरिष्ठ प्रशासकिय अधिकृत भोजानन्द राईले सर्वोत्कृष्ट परिषद् सेवा पुरस्कार, नायब वरिष्ठ प्रशासकिय अधिकृत सुनिलकुमार दाहालले उत्कृष्ट परिषद् सेवा पुरस्कार र नायब वरिष्ठ प्रशासकिय अधिकृत शारदा दाहालले परिषद् सेवा पुरस्कार प्राप्त गरे । प्रशिक्षणतर्फ नायब वरिष्ठ कुस्ती प्रशिक्षक मुम्ताज अली इद्रिसी सर्वोत्कृष्ट परिषद् सेवा पुरस्कार, क्रिकेट प्रशिक्षक मन्जुर आलम खान उत्कृष्ट परिषद् सेवा पुरस्कार र भलिबल प्रशिक्षक उमादेवी गुरुङ परिषद् सेवा पुरस्कारबाट पुरस्कृत भए । सर्वोत्कृष्ट, उत्कृष्ट र परिषद् सेवा पुरस्कारबाट पुरस्कृत हुनेले क्रमशः २५ हजार, १५ हजार र १० हजार नगदसहित पुरस्कारसहित ट्रफी पाए ।

कर्मचारीतर्फ नै इन्जिनियर सविन महर्जन तथा सहायक बक्सिङ प्रशिक्षक राज श्रेष्ठले करार सेवा पुरस्कार प्राप्त गरे । दुवैलाई जनही १० हजार नगदसहित ट्रफी प्रदान गरियो । खेल पत्रकार सम्मानबाट नेपाल टेलिभिजनका दुर्गानाथ सुवेदी (देवेन्द्र) र कान्तिपुर टेलिभिजनकी सविना कार्की सम्मानित भए । दुवैले ट्रफीसहित जनही २० हजार रुपैयाँ पाए ।

उनीहरुलाई राखेपका संरक्षक प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचण्ड’, युवा तथा खेलकुद मन्त्री विराजभक्त श्रेष्ठ, राष्ट्रिय योगजना आयोगका सदस्य डा. उमाशंकर प्रसाद, राखेपका उपाध्यक्ष शिव कोइराला र राखेपका सदस्य–सचिव टंकलाल घिसिङले कार्यक्रमबीच पुरस्कृत गरे । कार्यक्रममा वरिष्ठ हांस्य कलाकार, लोकप्रिय गायक राजेशपायल राईलगायतले प्रस्तुती दिएका थिए ।



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२ पूर्वसचिवसहित १३१ दोषी ठहर, ३ पूर्वमन्त्री र १ पूर्वसचिवलाई सफाइ

काठमाडौँ । ललिता निवास परिसरको करिब २ सय ८४ रोपनी जग्गा कानुनसम्मत मुआब्जा दिएर २०२१ सालमा अधिग्रहण भएकामा त्यसको करिब ३० वर्षपछि योजनाबद्ध रूपमा व्यक्तिका नाममा फर्काइएको थियो । २०५० देखि हिनामिना गरिएको जग्गा ३० वर्षपछि फेरि सरकारका नाममा ल्याउने गरी विशेष अदालतले फैसला गरेकाेछ ।

ललिता निवास जग्गा प्रकरणमा १३१ जना दोषी ठहर हुनेगरी विशेष अदालतले गरेको फैसलाको मुख्य सन्देश के हो ?

९३ वर्षअघि विसं १९८७ मा तत्कालीन राजा त्रिभुवनसँग मागेर प्रधानमन्त्री भीमशमशेरले हालको बालुवाटार क्षेत्रको २ सय ९९ रोपनी जग्गा आफ्नो नाममा पाएका थिए । ‘देवाली’, ‘सानु’, ‘तलेजु’ र ‘इन्द्रजात्रा’ गुठीका नाममा रहेको र केही किसानले जोतभोग गर्दै आएको यो जग्गा भीमशमशेरले पाएपछि उनले पर्खाल लगाएर घेरेका थिए । पर्खालमा लेखाइएको थियो– ललितादेवी । ललितादेवी राणाहरूकी कुलदेवीका नाममा पुजिन्थिन् । कुलका नाममा आएको जग्गा भीमशमशेरबाट छोरा हिरण्यशमशेर र उनका पनि छोरा सुवर्णशमशेरका नाममा सरेको थियो । २०१६ पुस १ मा ‘बिर्ता उन्मूलन ऐन’ जारी भएसँगै जग्गा प्राप्ति ऐनअनुसार तत्कालीन भोगाधिकारी सुवर्णशमशेरको परिवारबाट १४ रोपनी ११ आना जफत गरिएको थियो भने दुई सय ८४ रोपनी जग्गा अधिग्रहण गरेको थियो । अधिग्रहण गर्दा सरकारले सुवर्ण परिवारलाई १६ लाख रुपैयाँभन्दा बढी मुआब्जा दिएको थियो । सरकारले प्राप्त गरेको जग्गा गृह मन्त्रालयअन्तर्गतको समरजंग कम्पनीका नाममा राखिएको थियो ।

पञ्यायतकालमा राजकाज मुद्दा लगाएर जफत गरिएका जग्गा फिर्ता गर्न भनेर ०४७ मा मन्त्रिपरिषद्ले गरेको निर्णयलाई अपव्याख्या गरेर मुआब्जा तिरेर अधिग्रहण गरिएका हदबन्दीभन्दा माथिका जग्गा पनि फिर्ता गर्ने योजना सफल पारिएको थियो ।

सरकारी अधिकारी र भूमाफियाको मिलेमतोमा हिनामिना गरिएको ललिता निवास परिसरको यो जग्गा अब भने सरकारका नाममा फिर्ता हुने भएको छ । यो प्रकरणमा अख्तियारले दायर गरेको मुद्दामा बिहीबार फैसला दिँदै विशेष अदालतले नेपाल सरकारका २ पूर्वसचिव र तत्कालीन भोगाधिकारी राणा परिवारका ५ सदस्यसहित १३१ जनालाई दोषी ठहर गरेको छ । सरकारका नाममा भएको जग्गा सुनियोजित रूपमा हडपिएकामा ती सबै प्रक्रिया खारेज गर्दै अदालतले दोषीलाई बिगो, कैद र जरिवाना तथा हिनामिना भएको जग्गा जफत गरेर सरकारकै नाममा ल्याउने गरी फैसला सुनाएको हो ।

विशेष अदालतका न्यायाधीशहरू खुसीप्रसाद थारू, रामबहादुर थापा र रितेन्द्र थापाको इजलासले पूर्वभूमिसुधार सचिव छविराज पन्त र पूर्वभौतिक योजना सचिव दीपबहादुर बस्न्यात तथा ललिता निवासका तत्कालीन भोगाधिकारीहरू सुनीति राणा, शैलजा राणा, हेमनशमशेर, हाटकशमशेर र रुक्मशमशेरसहितलाई दोषी ठहर गर्दै बिगोबमोजिम जरिवाना र कैद सजाय हुने गरी फैसला सुनाएको हो । विशेष अदालतका प्रवक्ता एवं उपरजिस्ट्रार धनबहादुर कार्कीले विभिन्न निर्णय प्रक्रियामा सामेल २ पूर्वसचिवसहित तत्कालीन भोगाधिकारी, नक्कली मोही, जग्गा हिनामिनामा संलग्न कर्मचारी र मतियारका रूपमा काम गर्नेसहितलाई दोषी ठहर र हिनामिना भएको १ सय ३६ रोपनी जग्गा पनि जफत हुने फैसला भएको बताए ।

जग्गा किनबेचमा संलग्न भाटभटेनी सुपरमार्केटका सञ्चालक मीनबहादुर गुरुङ तथा भूमाफिया किटान गरिएका शोभाकान्त ढकाल र रामकुमार सुवेदीलाई जग्गा हिनामिना प्रकरणको मुख्य मतियारका रूपमा अदालतले दोषी ठहर गरेको छ । जग्गा हिनामिनासम्बन्धी मन्त्रालयबाट फाइल सदर गरेर मन्त्रिपरिषद्मा पेस गर्ने ३ जना तत्कालीन मन्त्री र १ सचिवसहित केही हाइप्रोफाइलले भने कसुरबाट सफाइ पाएका छन् । पूर्वउपप्रधान तथा भौतिक योजनामन्त्री विजयकुमार गच्छदार, पूर्वभूमिसुधारमन्त्रीद्वय चन्द्रदेव जोशी र डम्बरबहादुर श्रेष्ठ तथा पूर्वभूमिसुधार सचिव दिनेशहरि अधिकारीलाई विशेषले कसुरबाट सफाइ दिएको हो ।

विसं २०४९ देखि २०६९ को अवधिमा गुठी संस्थान, मालपोत, नापी, भूमिसुधार विभाग र मन्त्रालयबाट गैरकानुनी निर्णय गराएर ललिता निवास परिसरको १ सय ३६ रोपनीभन्दा बढी जग्गा हिनामिना गरेको कसुरमा अख्तियार दुरुपयोग अनुसन्धान आयोगले २०७६ माघ २२ मा १ सय १० जनाविरुद्ध बिगो, कैद र जरिवाना तथा ६५ जनाविरुद्ध जग्गा जफत प्रयोजनका लागि प्रतिवादी बनाएर विशेष अदालतमा मुद्दा दायर गरेको थियो । पछिल्लो पटक लगातार २२ दिनसम्म मुद्दालाई नियमित सुनुवाइमा राखेर अदालतले बिहीबार किनारा लगाएको प्रवक्ता कार्कीले बताए ।

विशेष अदालतका पूर्वअध्यक्ष गौरीबहादुर कार्कीले विशेषको फैसलाले राजनीतिक व्यक्तिलाई सफाइ दिए पनि यो फैसला समग्रमा साहसिक र ऐतिहासिक नै रहेको टिप्पणी गरे । ‘सरकारी जग्गा पद र शक्ति तथा प्रलोभनमा खाने/मास्ने काम जुनसुकै बेला भए पनि त्यस्तो अपराधमा संलग्नले एक दिन कानुनको कठघरामा आउनैपर्छ भन्ने सन्देश यसले दिएको छ,’ कार्कीले भने । हाल अख्तियार प्रमुख रहेका प्रेमकुमार राई गृह सचिव भएका बेला पूर्वसचिव शारदाप्रसाद त्रितालको संयोजकत्वमा छानबिन समिति गठन गरिएको थियो । समितिले दिएको प्रतिवेदनका अनुसन्धानका लागि सरकारले अख्तियार र प्रहरीमा पठाएको थियो । त्यसका लागि अधिवक्ता युवराज कोइरालाले थुप्रै तथ्य र प्रमाण सरकारलाई दिनुका साथै जग्गा हिनामिनामाथि अनुसन्धानका लागि डेढ दशकदेखि सक्रियता देखाएका थिए ।

२०४६ पछि बनेको मन्त्रिपरिषद्ले पञ्चायतकालमा जफत जग्गा छानबिन गरी फिर्ता गर्ने निर्णय गरेको थियो । तर, यही निर्णयको गलत व्याख्या गरेर मुआब्जा दिएर अधिग्रहण गरिएका जग्गा पनि फिर्ता गराउने प्रपञ्च रचिएको थियो । सुवर्णशमशेरको परिवारबाट २ सय ८४ रोपनी १४ आना ३ पैसा जग्गा तत्कालीन सरकारले उचित मुआब्जा दिएर कानुनसम्मत अधिग्रहण गरेको ठहर पनि विशेष अदालतले गरेको छ ।

२०२१ मंसिर १५ मा ललिता निवासको जग्गा अधिग्रहण गर्ने निर्णय भएको र १७ मा यो विषय राजपत्रमा प्रकाशित भएकाले यसलाई अन्यथा भन्न नमिल्ने अदालतको टिप्पणी छ । ‘सुवर्णशमशेर र उनका छोरा कञ्चनशमशेरका नाममा रहेको १४ रोपनी ११ आना जग्गा मात्रै जफत भएको हो, २ सय ८४ रोपनी जग्गा कानुनसम्मत अधिग्रहण भएको ठहर्छ’ अदालतले भनेको छ । सरकारी निर्णयको अपव्याख्या गरेर अधिग्रहण भएको जग्गालाई पनि जफतकै सूचीमा राखेर हडपिएको फैसलामा उल्लेख छ ।

२०६६/६७ मा प्रधानमन्त्री कार्यालय विस्तारका नाममा नक्कली मोही र जग्गा धनीलाई ललिता निवासको जग्गा सट्टाभर्नाबापत दिने प्रस्ताव मन्त्रिपरिषद्मा लगेर अनुमोदन गराइएको थियो । मन्त्रीहरू गच्छदार, श्रेष्ठ, जोशीले लगेको प्रस्तावका आधारमा ललिता निवासको करिब ५ रोपनी जग्गा पशुपति टिकिन्छा गुठीका नाममा कायम गरेर नक्कली मोहीमा जाने गरी निर्णय भएका थिए ।

तलबाट आएका प्रस्तावलाई मन्त्रिपरिषद्सम्म पुर्‍याउने काम गरेको भन्दै सचिव अधिकारीलाई सफाइ दिइएको छ । मन्त्रिपरिषद्को निर्णय नीतिगत भएको र नीतिगत निर्णयमा अख्तियारको क्षेत्राधिकार नरहने भन्ने अभियोगपत्रमै उल्लेख भएका लगायत कारण देखाएर गच्छदार, श्रेष्ठ र जोशीलाई सफाइ दिइएको हो । २०४९ र २०६२ मा जग्गा राणा परिवारका नाममा लैजान भएको निर्णयमा डिल्लीबजार मालपोतका तत्कालीन प्रमुखद्वय कलाधर देउजा र टीकाराम घिमिरेसहित १८ लाई अदालतले दोषी ठहर गरेको छ । सरकारी जग्गामा गलत दावीसहित राणा परिवारका ५ जना सदस्यहरू सुनीति राणा, शैलजा राणा, हेमनशमशेर, हाटकशमशेर र रुक्मशमशेर राणा तथा मालपोत र भूमिसुधारका कर्मचारीहरू कलाधर देउजासहित ५ कर्मचारी तथा भूमाफिया रामकुमार सुवेदी र शोभाकान्त ढकाललाई दोषी ठहर गर्दै जनही ७५ लाख रुपैयाँ जरिवाना र २ वर्ष कैद सजाय सुनाइएको छ । मालपोतबाट छुट दर्ताका नाममा थप १२ आना ०६२ मा राणा परिवारका नाममा गएको थियो । यसमा प्रमुख मालपोत अधिकृत टीकाराम घिमिरेसहित ५ कर्मचारी र सुनीतिलाई ६ महिना कैद र जनही ७ लाख रुपैयाँ जरिवाना तोकिएको छ ।

नक्कली जग्गाधनी र नक्कली मोहीलाई सट्टाभर्ना दिने गरी गैरकानुनी रूपमा मन्त्रालय र मालपोतबाट भएका निर्णय प्रक्रियामा सामेल तत्कालीन सचिवद्वय बस्न्यात र पन्तसहित १२ जना दोषी ठहर भएका छन् । दुई सचिवसहित १२ कर्मचारी र व्यापारी मीनबहादुर गुरुङलाई जनही ८० लाख ४८ हजार रुपैयाँ जरिवाना र २ वर्ष कैद, जग्गा जफतको फैसला सुनाइएको छ । सट्टाभर्नामा नक्कली मोही दाबी गर्ने श्रीकृष्ण महर्जनसहित १२ जनालाई पनि दोषी ठहर गरी २ वर्ष कैद र बिगोबमोजिम जरिवानाको फैसला भएको छ ।

५७ जनालाई नक्कली मोही बनी जग्गामा हकदाबी गरेकाले कसुरदार ठहर गरिएको छ । उनीहरूलाई जनही २ वर्ष कैद र जरिवानाको फैसला भएको छ । घूसबापत जग्गा बकस लिएका १५ जनालाई पनि २ वर्ष कैद र जरिवानाको फैसला भएको छ ।

टिकिन्छा गुठीमा लगेर नक्कली मोही कायम गर्ने तत्कालीन गुठी प्रशासक बलिरामप्रसाद साह तेलीसहित १७ जनाविरुद्ध १ वर्ष कैद र जनही ४१ लाख ६७ हजार ५ सय २९ जरिवानाको फैसला भएको छ । गुठीमा जग्गा लगेर भूमाफियाका नाममा कायम गराएको अभियोगमा तेलीसहित हरिबोल आचार्य, रामेश्वर बिडारी, सेवन्तराज चापागाईं, हेमराज सुवेदी, तेजराज पाण्डे, तुल्सी पोखरेल, हरिप्रसाद जोशी, दिलीपकुमार भट्ट, नवराज पौडेल, जयप्रसाद रेग्मी, शैलेन्द्र पौडेल, फणीन्द्रप्रसाद दाहाल, मणिकुमार राना, बद्रीबहादुर कार्की, लक्ष्मीनारायण उप्रेती र दिनेशप्रसाद शर्मा दोषी ठहर भएका हुन् । त्यसैगरी प्रधानमन्त्री निवास विस्तारका नाममा भएका निर्णयमा पनि कर्मचारीहरू दोषी ठहर भएका छन् । यसमा मालपोत कार्यालयबाट निर्णय गर्दा नै जग्गा सट्टाभर्नास्वरूप जग्गा धनी र मोहीको नाम नामसारी दाखिला खारेज प्रक्रिया सम्पन्न गरेर मन्त्रालयमा पेस गरिएको र मन्त्रालयबाट यसमा थप नाम हेरफेर गर्ने काम सचिवले गरेको भन्दै निर्णय प्रक्रियामा कर्मचारीका कारण जग्गा व्यक्तिका नाममा पुगेको फैसलामा उल्लेख छ ।

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रामेछापका पाण्डेद्वारा अफ्रिकाको सर्वोच्च शिखर किलिमञ्जारोको सफल आरोहण

१५ कात्तिक, काठमाडौं । रामेछाप निवासी युवा पर्वतारोही प्रकाशराज पाण्डेले अफ्रिकाको सर्वोच्च शिखर किलिमञ्जारो सफल आरोहण गरेका छन्। यही अक्टुबर ३१ तारिखका दिन बिहान ६स्ः४० बजे उनले तान्जेनियाको किलिमाञ्जारो हिमाल आरोहण‍ गरेका हुन्। पाण्डेले किलिमञ्जारोमा नेपालको राष्ट्रिय झण्डासमेत फहराएका छन् । उक्त हिमाल पाँच हजार ८ सय ९५ मिटर अग्लो छ। पर्वतारोही पाण्डेले आधार शिविरबाट तीन दिनमा आरोहण पूरा गरेको रामेछाप न्युजलाइ बताए ।

पाण्डेले सातै महादेशका उच्च हिमाल आरोहण गरी सेभेन समिट पूरा गर्ने लक्ष्यका साथ गत जुन २९ तारिखका दिन बिहान ९ बजे युरोपको सर्वोच्च शिखर रुसमा रहेको माउन्ट एलब्रस हिमाल पनि आरोहण गरेका थिए। उनले यस अगाडि सगरमाथा, मनास्लु, आमादब्लमलगायत नेपालका ६ वटा हिमालको सफल आरोहण गरिसकेका छन् । सात वटा महादेशका अग्ला हिमाल चढ्ने तयारी गरिरहेका पाण्डेले सबैभन्दा पहिला युरोपकै अग्लो हिमाल रुसको माउन्ट एल्ब्रसबाट आफूले अभियान सुरु गरेकोगरेको बताए । 

हाल पाण्डेले अफ्रिकाको सर्वोच्च शिखर किलिमञ्जारोको पनि सफल आरोहण गरेका छन् । उनी गत अक्टुबर २३ मा आरोहरणका लागि नेपालबाट त्यसतर्फ प्रस्थान गरेका थिए।रामेछाप लिखु तामाकोसी गाउँपालिका निवासी पाण्डेले सात वटै प्रदेशका उच्च हिमाल आरोहण गरेर विश्व रेकर्ड कायम गर्ने उद्देश्य लिएका छन्।

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गायक विष्णु डुम्रे र गायिका अस्मिताको स्वरमा“फरर डोरी” सार्वजनिक

काठमाण्डौ । नेपाली मौलिक लोक गीत संगीतमा सक्रिय गायक विष्णु डुम्रे र गायिका कल्पना काफलेको स्वरमा  “फरर डोरी” बोलको गीत सार्वजनिक गरेका छन् । मायाको डोरी आफनी मायालुलाई गास्नको लागी गीत मार्फत आग्रह गरिएको छ । जिवन भण्डारीको शब्द तथा विष्णु डुम्रे लय सिर्जना भने विष्णु डुम्रेले गरेका छन । मौलिक सिर्जनाको विकास एवम विस्तारका लागी भएपनी यस गीतले नेपाली संगीतको सागरमा केही भएपनी योग्दान दिने उहाँले बताउनुभयो ।

गीतको भिडियोमा लोमस शर्मा र  अस्मिता रनपालको आकर्षक अभिनय देख्न सकिन्छ । मौलिक स्वादमा तयार भएको गीतको भिडियोलाई कुमार केशीद्वारा निर्देशित भिडियोलाई अजय रेग्मीको छायांकन तथा अमृत चापागाईँको सम्पादन रहेको छ ।

भिडियो हेर्न यहाँ क्लिक गर्नु होला

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